रमजान का पाक महीना चल रहा है और जैसा कि आपको पता है कि इस्लाम के पाँच अरकान है जिनसे से एक है रोजा जो की पूरे रमजान के 30 रखे जाते है और हर एक आकिल-बालिग, मर्द-औरत पर रोज़े फर्ज होते है लेकिन कुछ एसी कंडिशन्स है अगर कोई इस्लामी भाई या इस्लामी बहिन इन कन्डिशन मे है तो शरीयत उसे इजाजत देती है कि वो अब रोज़े छोड़ सकते है तो चलिए जानते है ।
इन 15 कंडिशन्स मे रोज़े को छोड़ा जा सकता है
- सफर, हमल यानि औरत उम्मीद से हो और बच्चे को दूध पिलाना, बीमारी और बुढ़ापा, हलाक होने का डर और नुकसान ए अक्ल और जिहाद ये सब रोज़े न रखने के उज्र है यानि की अगर आप इनमे से किसी भी कंडिशन्स मे हो तो आप रोजा छोड़ सकते हो लेकिन बाद मे जब ये आजमाइश दूर हो जाए तब छोड़े हुए रोज़ों का रखना फर्ज है ।
- दिन मे सफर किया तो उस दिन का रोजा अफ़तार करने के लिए आज का सफर उज्र नहीं है अलबत्ता तोड़ेगा तो कफ्फारा लाजिम न आएगा मगर गुनहागार होगा और अगर सफर करने से पहले तोड़ दिया तो कफ्फारा भी लाजिम हुआ । अगर दिन मे सफर किया और मकान पर कोई चीज भूल गया था उसे लेने वापिस आया और मकान पर आकर रोजा तोड़ दिया तो कफ्फारा वाजिब है ।

3. सफर से मुराद शरई सफर है यानि की इतनी दूर जाने के इरादे से निकले कि अपने घर से 92 किलो मीटर की दूरी से ज्यादा हो तो ही आप मुसाफिर कहलाओगे और ये आपका जाना सफर कहलाएगा ।
4. मुसाफिर ने जहवा ए कूबरा से पहले इकामत की और अभी कुछ खाया नहीं तो रोज़े की नियत कर लेना वाजिब है ।
5. खुद उस मुसाफिर के साथ वाले रोज़े रखने मे जरर न पहुचे तो रोजा रखना सफर मे बहतर है वरना न रखना ही बहतर है ।
6. हमल वाली और दूध पिलाने वाली को अगर अपनी जान या बच्चे का सही डर हो तो इजाजत है के उस वक्त रोजा न रखे ख्वाह दूध पिलाने वाली बच्चे की मा हो या दाई अगरचे रमजान मे दूध पिलाने की नौकरी की हो ।
7. मरीज को बीमारी बढ़ जाने या देर मे अच्छा होने का या तंदरुस्त को बीमार हो जाने का गुमान गालिब हो या खादिम खादिमा को बहुत कमजोर हो जाने का गुमान गालिब हो तो इन सब को इजाजत है के उस दिन रोजा न रखे ।
8. याद रखे इन सूरतों मे गुमान गालिब जरूरी है महज वहम और ख्याल काफी नहीं होगा । गुमाने गालिब की 3 सूरते है ।
(a) इसकी जाहिर निशानी पायी जाती है ।
(b )उस शख्स अपना तजुर्बा हो ।
(c) किसी मुसलमान माहिर तबीब ने जो फासिक न हो उसने उसकी खबर दी हो।
ध्यान रखिएगा
अगर न कोई निशानी हो न ही तजुर्बा और न ही इसे तबीब ने बताया तो रोजा छोड़ना जाएज नहीं बल्कि महज वहम और ख्याल से या मुशरीक या फासिक तबीब के कहने से रोजा तोड़ दिया तो कफ्फारा भी लाजिम आएगा ।
आज कल के अक्सर तबीब काफिर नहीं तो फासिक जरूर है और न सही तो हाजिक और माहिर तबीब नायाब से हो रहे है एसो का कहना काबिल ए एतबार नहीं इन के कहने पर रोजा रखना या तोड़ना जाएज नहीं ।
अक्सर इन तबीबो को देखा जाता है के जरा-जरासी बीमारी मे रोजा को मना कर देते है इतनी भी तमीज नहीं रखते के किस मर्ज मे रोजा मजर है किसमे नहीं ।
9. भूक और प्यास एसी हो के हलाक हो जाने का सही डर हो या अक्ल खराब हो जाने का डर हो तो रोजा न रखे ।
10. सांप ने काटा और जान जाने का डर हो तो रोजा तोड़ दे ।
11. शैख फ़ानी यानि की वो बूढ़ा जिस की उम्र एसी हो गई के अब रोज बरोज कमजोर ही होता जाएगा जब रोजा रखने से आजिज़ हो यानि की न अब रख सकता है न आइंदा उसमे इतनी ताकत आने की उम्मीद है के रोजा रख सकेगा तो उसे रोजा न रखने की इजाजत है और हर रोज़े के बदले मे फ़िदया यानि की दोनों वक्त एक मिसकीन को पेट भर खाना खिलाना उस पर वाजिब है या फिर हर रोज़े के बदले मे सदका फ़ितर के बराबर मिसकीन को दे दे ।
12. अगर फिदिया देने के बाद इतनी ताकत या गई के रोज़े रख सके तो उन रोज़ों की कज़ा रखना वाजिब है ।
13. किसी के बदले कोई दूसरा न रोजा रख सकता है न नमाज़ पढ़ सकता है अलबत्ता अपने रोज़े नमाज़ वगैरा का सवाब दूसरे को पहुचा सकता है ।
14. अगर एसा बुड़ा हो की गर्मियों मे गर्मी की वजह से रोजा नहीं रख सकता मगर जाड़ों मे रख सकता है तो अब इफ्तार करले और उनके बदले जाड़ों मे रखना फर्ज है ।
15. निफली रोजा कसदन शुरू करने से लाजिम हो जाता है की अगर तोड़ेगा तो कज़ा वाजिब होगी या किसी वजह से टूट जाएगा जैसे हेज या गया तो भी कज़ा वाजिब है ।