हुज़ूर की हजरते आयेशा से मुहब्बत कैसी थी !

हुज़ूर की हजरते आयेशा से मुहब्बत कैसी थी !

हुज़ूर नबी ए करीम की हजरते आयेशा रजियल्लाहु तआला अन्हा से मुहब्बत !

मेरे अजीजों इस्लाम की प्यारी और रोशन तारीख मे कई एसे रिश्ते है जो उम्मत के लिए एक रहनुमाइ करते है या कहे के हुज़ूर ने अपनी उम्मत को हर एक रिश्ते से कामियाब और मुहब्बतों से नवाजा है ।

इन्ही पाक रिश्तों मे से एक रिश्ता है हुज़ूर नबी ए करीम की हजरते आयेशा रजियल्लाहु तआला अन्हा से मुहब्बत यानि के हुज़ूर की हजरते आयेशा से मुहब्बत कैसे थी और कितनी थी ? ये रिश्ता न सिर्फ मुहब्बत और शफकत की मिसाल है बल्कि इल्म, हिकमत और फिकही रहनुमाई का भी एक बहतरीन जरिया है ।

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हज़रते आयेशा रजियल्लाहु तआला अन्हा कौन थी ?

हजरते आयेशा रजियल्लाहु तआला अन्हा, उम्मुल मोमिनीन के लकब से मशहूर है और ये हजरतए अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु तआला अनहू की साहिबजादी थी जो कि हुज़ूर की जाहिरी वफ़ात के बाद इस्लाम के पहले खलीफा रहे ।

नबी करीम ने उनके साथ निकाह मदीना ए मुनव्वरा मे हिजरत के बाद किया था हुज़ूर की हजरते आयेशा से मुहब्बत कैसे थी इसका अनदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है की आप ने फरमाया, ” तमाम औरतो मे मुझे आयेशा सबसे ज्यादा महबूब है । ( सही बुखारी )

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हुज़ूर की हजरते आयेशा से मुहब्बत कैसे थी ?

01) हजरते आयेशा का झूठा पानी

एक बार जब नबी ए करीम घर मे दाखिल हुए तो देखा के हजरते आयेशा पानी पी रही है और जब पानी पी लिया फिर हजरतए आयेशा से पानी मांगा और कहा बताओ आयेशा तुमने अपने लब किस जगह लगाए थे,

ताकि मै भी वही से पानी पिऊ ये सुनकर हजरते आयेशा ने बताया के हुज़ूर यहा से फिर हुज़ूर ने वही से पानी पिया इससे हम सबको दरस मिलता है के बीवी से मुहब्बत इस तरह भी करनी चाहिए और उनका दिल भी रखना चाहिए ।

लेकिन अक्सर देखा जाता है आज कल के बाज लोग अपनी बीवी को अपने पैर की जुतिया समझते है और उनको इसी मे उनकी मर्दानगी दिखती है लेकिन जाहिलाना वादियों मे गम है असल मे बीवी से मुहब्बत करना तो मेरे नबी की सुन्नत है ।

हा ये है ज्यादा सर पर भी न चड़ाओ और पैरों मे भी नहीं रखो बीवी दिल वली चीज है इसलिए दिल मे ही रखो और इसी तरह मुहब्बत रखो जिस तरह हमारे नबी अपनी बीवी से मुहब्बत रखते थे ।

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02) हजरते आयेशा के साथ दौड़ लगाना

एक मर्तबा हुज़ूर नबी ए करीम तमाम सहाबाओ के साथ सफर पर थे और इस सफर मे हजरते आयेशा भी थी तो जब हुज़ूर ने देखा के सब लोग आगे निकल गए है और हजरते आयेशा हुज़ूर के साथ ही थी,

अब हुज़ूर कहते है आयेशा क्यों न दौड़ लगाइ जाए देखते है न कौन जीतता है अब दौड़ लगाइ तो हुज़ूर पीछे रह गए हजरते आयेशा आगे निकल गई तो अब देखे हजरते आयेशा हुज़ूर से किस तरह मुहब्बत करती और कितना अदब करती ।

जब हजरते आयेशा आगे निकली न तो हजरतए आयेशा ने ये नहीं कहा के हुज़ूर आप पीछे रह गए बल्कि कहा के हुज़ूर मै अपने छोटे छोटे कदमों से आपसे आगे निकल आई ये अदब और मुहब्बत थी एक बार फिर दुबारा

इश्क और मुहब्बत कैसे करे ?

एसा ही एक सफ़र था और ठीक एसे ही सब लोग आगे निकल गए और हुज़ूर और हजरते आयेशा पीछे रह गए अब दुबारा हुज़ूर ने कहा चलो आयेशा दौड़ लगाते है तो दौड़ लगाई दोनों ने,

लेकिन इस बार हुज़ूर नबी ए करीम आगे निकल गए अब जब हुज़ूर आगे निकल गए तो हुज़ूर ने भी ये नहीं कहा के मै जीत गया बल्कि हुज़ूर ने कहा आयेशा ये उस दिन का बदला जब तुम आगे निकली थी ।

तो मेरे अजीजों ये है मुहब्बत ये है अदब मिया बीवी को कैसे रहना चाहिए उनको ये वाकिया पता होने ही चाहिए के बीवी के साथ खेलना भी मेरे नबी की सुन्नत है उनसे हसी मजाक करना भी मेरे नबी की सुन्नत है उनकी इज्जत देना उनकी हिफाजत करना ये सब एक अच्छे शोहर की निशानी है ।

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03) हुज़ूर का हजरते आयेशा का नाम लेकर पुकारना

हजरतए आयेशा रजियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती है के नबी ए करीम अक्सर मुझे प्यार से हुमेरा के नाम से पुकारते थे जो के एक नरम और प्यार भरा अंदाज था ये लहजा उनके दिली लगाव और इंतिहाई मुहब्बत को जाहीर करता है ।

इससे ये भी हमको सीखने को मिला के अपनी बीवी को हम भी कोई खास नाम दे सकते है पुकारने को जिससे उसके दिल मे भी मुहब्बत और आपके लिए और अदब बरपा होगा ।

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04) इश्क का इजहार बिना लफ्जों के !

हमारे प्यारे-प्यारे नबी ए करीम दुनिया वालों की तरह लफ्जों मे मुहब्बत का इजहार नहीं किया लेकिन उनकी हर एक हरकत और रवैया इस बात की गवाही देता था के हुज़ूर नबी ए करीम की हजरतए आयेशा से मुहब्बत दिल की गहराइयों मे थी।

आपने फरमाया था के, ” मेरे पास वही आती है जब मै आयेशा के साथ होता हूँ किसी और के साथ नहीं । ” ( सही मुस्लिम ) ये बात उनकी फजीलत और नबी ए करीम की तरफ से खास तवज्जोह को जाहीर करती है ।

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05) गुस्से मे भी मुहब्बत

एक वाकिया बहुत मशहूर है कि एक बार हजरत आयेशा को किसी बात पर गुस्सा आअ गया और उन्होंने हुज़ूर से थोड़े से ऊंचे लहजे मे बात की और तब हुज़ूर मुस्कुराये और फरमाया, ” ए आयेशा ! मै तुम्हारा गुस्सा भी समझता हूँ और तुम्हारी मुहब्बत भी । ”

मेरे प्यारो इस बात से साबित होता है के हुज़ूर की हजरते आयेशा से कैसी मुहब्बत थी और ये बस हसी खुशी के लम्हों मे ही नहीं, बल्कि गुस्से और नाराजगी के वक्त मे भी बरकरार रहती थी ।

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06) वफ़ात के वक्त की खवाईश क्या थी ?

हमारे प्यारे नबी ए करीम की आखिर खवाईश यही थी के उनका आखिरी वक्त हजरते आयेशा के घर मे ही गुजरे और आपने अपनी तमाम बीवियों से इजाजत लेकर हजरते आयेशा रजियल्लाहु तआला अन्हा के घर रहने का फैसला किया,

और वही आपने अपनी रूह अल्लाह के हवाले की ये इस बात की दलील है के हुज़ूर नबी ए करीम की हजरतए आयेशा रजियल्लाहु तआला अन्हा के साथ मुहब्बत न सिर्फ दुनिया मे ही बल्कि आखिरत मे रहेगी ।

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पूरी उम्मत के लिए पैगाम

मेरे अजीजों हुज़ूर नबी ए करीम की हजरतए आयेशा रजियल्लाहु तआला अन्हा से मुहब्बत हमे ये सिखाती है के मिया-बीवी का रिश्ता सिर्फ जरूरत का या मजबूरी का नाम नहीं बल्कि एक दोस्ती, मुहब्बत और इज्जत, इल्म का संगम होना चाहिए ।

हमारे प्यारे-प्यारे नबी ए करीम ने काभी भी हजरतए रजियल्लाहु तआला अन्हा को नजर अंदाज नहीं किया बल्कि हर एक मौके पर उन्हे अहमियत दी और हम सब को पैगाम दिया के इस तरह अपनी बीवी से मुहब्बत किया करो जैसे मै करता हूँ ।

इश्क और मुहब्बत कैसे करे ?

हमने इस रिश्ते से क्या सबक सीखा ?

a ) बीवी के साथ हमेशा ही नरमी, हसी-मजाक और गुफ्तगू से रिश्ते मजबूत होते है ।

b ) शौहर को चाहिए के वो अपनी बीवी की बातों को तवज्जो से सुने ।

c ) बीवियों के साथ इल्म बाटना और उन्हे शफकत के साथ समझाना भी सुन्नत ए रसूल है ।

d ) अगर नबी ए करीम ने अपनी बीवी से इतना प्यार किया तो उम्मत को भी अपने घरों मे इस सुन्नत को जिंदा रखना चाहिए ।

e ) सबसे बड़ी चीज है एक दूसरे के जज़्बात को समझना शौहर बीवी को समझे और बीवी शौहर को इससे आपस मे मुहब्बत बडती रहेगी ।

जहन्नम मे सबसे पहले कौन जाएगा ?

खुलासा ए कलाम

मेरे अजीजों हुज़ूर नबी ए करीम की हजरतए आयेशा से मुहब्बत एक एसा नूरानी रिश्ता है जो की न सिर्फ इस्लामी तारीख का हिस्सा है बल्कि हर एक मुसलमान के लिए एक मिसाल भी है ।

यह रिश्ता हमे बताता है की सच्ची मुहब्बत किसे कहते है और कैसे एक मर्द अपनी बीवी के साथ इस्लामी अंदाज मे मुहब्बत भरी जिंदगी बशर कर सकता है ।

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