बकरा ईद क्यों मनाई जाती है ? ईद के दिन बकरे क्यों काटे जाते है ? बकरा ईद के पीछे की कहानी क्या है मुसलमान बकरों को क्यों जिबा यानि काटते है ? इसके पीछे पूरी कहानी क्या है और मुसलमान बकरा ईद पर कुर्बानी कब से करते आ रहे है और इस्लाम मे इसकी अहमियत क्या है क्या ये कुर्बानी करना फर्ज है या वाजिब है इन तमाम सवालों के साथ और भी कई सारे सवालों के जवाब आपको आज के इस पोस्ट मे मिल जाएंगे अगर आपने इसको पूरा पढ़ा तो आपको इसकी जानकारी के लिए कही और नहीं जाना पड़ेगा।
बकरा ईद यानि की ईद उल अज़हा पर कुर्बानी क्या है ?
दीन ए इस्लाम मे कुर्बानी करना बकरा ईद यानि की ईद उल अज़हा के मोके पर ये वाजिब है लेकिन वाजिब उसी मुसलमान पर है जो कुर्बानी करने की हेसियत रखता हो जिसके बारे मे आगे तफ़सील से बात करेंगे। ईद उल अज़हा पर ही कुर्बानी की जाती है ये असल मे अल्लाह पाक के हुक्म की तामील है और उसकी राह मे कुर्बान करने का एक प्रतीक यानि की निशानी है आज के इस पोस्ट मे हम इसके तालुक से तफ़सील मे लिखेंगे जिसको पढ़ कर आपके सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
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कुर्बानी क्यों की जाती है ?
हजरत ए इब्राहीम अलैहिस सलाम का अपने बेटे हजरते इस्माईल अलैहिस सलाम को कुर्बान करने की अदा इतनी पसंद आई की अल्लाह पाक ने त कयामत इसको वाजिब कर दिया और हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम की याद मे ही ईद उल अज़हा के मोके पर कुर्बानी की जाती है।
हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम की कुर्बानी क्या थी और कैसे उन्होंने अपने बेटे को कुर्बान किया ?
आपको बता दे के अल्लाह पाक ने जब हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम को आज माना चाहा तो कहा के ए इब्राहीम मेरी राह मे क्या-क्या कुर्बान कर सकते हो हजरते इब्राहीम ने कहा अपनी हर एक अजीज से अजीज मेरे मालिक तू ही ने सब कुछ दिया है तब अल्लाह पाक ने कहा के अपने बेटे इस्माईल को मेरी राह मे कुर्बान कर दो तब हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम अल्लाह पाक हुक्म बिना दिल मे कोई बात लाए

अपने बेटे हजरते इस्माईल अलैहिस सलाम को कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए और फिर जेसे ही हजरते इस्माईल अलैहिस सलाम की गर्दन पर छुरी चलाने की कोशिश की क्योंकी आँखों पर पट्टी हजरते इब्राहीम ने इसलिए बांधी थी की अपने बेटे को तड़पता देखेंगे तो हाथ न रुक जाए इसलिए उनको कुछ नहीं दिख रहा था और जेसे ही उन्होंने हजरते इस्माईल अलैहिस सलाम की गर्दन पर छुरी चलाई
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वेसे ही अल्लाह पाक ने उनके बेटे की जगह पर मेमना यानि की दुंबा रख दिया और इस तरह हजरते इस्माईल अलैहिस सलाम सही सलामत रहे और वो मेमना जिबा हो गया जब आंखे खोली तो बेटे सही पाया और मेमना जिबा देखा।
ये अदा हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम की अल्लाह पाक को इतनी पसंद आई की त कयामत तक इसको करना वाजिब करार दे दिया ताकि हर साल मेरे प्यारे नबी इब्राहीम की सुन्नत यानि की कुर्बानी की याद ताज़ा होती रहे ।
कुरान क्या कहता है कुर्बानी के तालुक से ?
अल्लाह पाक कुराने पाक मे इरशाद फरमाता है के, ” अल्लाह तक न तो इनका गोस्त पहुंचता है और न ही इनका खून, बल्कि उससे सिर्फ तुम्हारा तकवा पहुंचता है। ” इसका मतलब ये निकलता है के कुर्बानी का असल मकसद सिर्फ जानवर को जिबा करना ही नहीं है बल्कि इसके साथ-साथ आपकी सच्ची कुरबानी की नियत और ईमानदारी भी लाजिम है न की ये देखा जाए की किस बकरे या किस जानवर जो हलाल है इसमे गोस्त निकल जाएगा ।
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कुरान की इस आयत की तफ़सील मे ये भी आया है की अल्लाह की राह मे कुर्बान करने के लिए आपकी नियत पाक और साफ होनी चाहिए और इसमे किसी भी तरीके से कोई दिखावा नहीं होना चाहिए न ये की उसके मे इतना गोस्त ही निकला और मेरे मे तो इतना सारा निकला है और न ये हो के उसका बड़ा सस्ता आया है और मेरा बड़ा ही कीमती जानवर है ये फकत दिखावा ही शुमार किया जाएगा एसी बाते बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए।
ईद उल अज़हा यानि बकरा ईद के मोके पर गरीबों का क्या और कितना हिस्सा होता है ?
हमारे प्यारे दीन मे कुर्बानी के मौके पर भी गरीब-गुरबा, यतीमों का भी ख्याल रखा गया है इसमे यानि की कुर्बानी के गोस्त मे से 3 हिस्से होते है ।
- एक हिस्सा खुद के लिए रखे ।
- एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए ।
- एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए ।
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कुर्बानी कौन-कौन कर सकता है ?
इस्लाम के अंदर हर वो मुसलमान चाहे मर्द हो या औरत जो साहिब-ए-निसाब है उस पर ईद उल अज़हा के मौके पर कुर्बानी करना वाजिब हो जाती है अगर नहीं करेगा या नहीं करेगी तो उसके लिए हमारे प्यारे-प्यारे नबी, हुज़ूर नबी ए रहमत इरशाद फरमाते है, ” जो साहिब ए निसाब होने के बावजूद भी कुर्बानी न करे तो उससे कहदों की वो हमारी ईद गाहो के करीब भी न आए । ”
साहिब ए निसाब कौन होता है और इससे क्या मुराद है ?
साहिब ए निसाब के वो लोग होते है जो नीचे दी गई बातों मे शुमार किए जा सके जैसे की..
- जिसके पास 52.5 तोला चांदी यानि की 612.36 ग्राम चांदी या 7.5 तोला सोना यानि की 87.48 ग्राम सोना हो ।
- या इतनी रकम हो जो इनकी कीमत के बराबर हो चाहे दोनों की चीजों की रकम को मिलाकर ही हो ।
- और ये उसकी बुनियादी जरूरतों जैसे की खर्च, कर्ज से अलग हो
ये हुक्म फकत मर्द पर ही नहीं बल्कि औरत भी है अगर मिया बीवी है शोहर साहिब ए निसाब है और उसकी बीवी भी तो फिर दोनों पर ही कुर्बानी वाजिब होगी फकत एक ही कुर्बानी करने पर एक का ही वाजिब अदा होगा दूसरे का नहीं, ये अक्सर देखा गया है की मर्द तो करता है और बीवी के पास भी सोने चांदी की चीजे होती है लेकिन फिर भी केवल मर्द ही करता है और इसी को दोनों की तरफ से माना जाता है जो की शरीयत मे गलत है क्योंकी,
ये फकत मर्द का वाजिब अदा हुआ बीवी का रह गया ठीक ये हालत घरों मे देखे जाते है की 1 बाप के 4 बेटे है और बाप और 4 बेटे साहिब ए निसाब होते है लेकिन कुर्बानी एक ही हो रही होती है जो की गलत है ये वाजिब छोड़ रहे होते है जिसका जवाब कब्र मे हश्र मे देना होगा ।
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किन-किन लोगों पर कुर्बानी वाजिब नहीं है ?
आपको बात दे की हमारे दीन मे बहुत आसानी है की अगर जो साहिब ए निसाब नहीं है तो उनके ऊपर कुर्बानी भी वाजिब नहीं है अब ये लोग कौन होते है जो की नीचे लिखे जा रहे है।
- गरीब लोग जरुरतमन्द लोग।
- जिनके पास न निसाब के बराबर रकम हो और न ही इतना सोना या चांदी हो और न ही इन दोनों को मिलाकर इतनी कीमत बन रही हो ।
- कर्ज मे दुबे हुए लोग ।
लेकिन इसके साथ ही आपको बता दे की अगर कोई कुर्बानी करना भी चाहे तो यह एक नैक अमल है और अल्लाह उसे इसका बहुत सवाब भी देगा यानि करना चाहे तो कर भी सकता है लेकिन उसके ऊपर वाजिब नहीं है की करनी ही है ।
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बकरा ईद पर कुर्बानी कब की जाती है ?
मजहब ए इस्लाम मे कुर्बानी करने के लिए ईद उल अज़हा के तीन दिन 10, 11 और 12 जिल हिज़्जा तह किए गए है जिनको और अच्छे से समझते है ।
- सबसे बहतर दिन – 10वा जिल हिज्जआ यानि की ईद का पहला ही दिन
- दूसरा बहतर दिन – 11 वा जिल हिज्जआ यानि की ईद का तीसरा दिन
- आखिरी और तीसरा दिन – 12 वा जिल हिज्जआ यानि की ईद के तीसरे दिन सूरज डूबने से पहले
इन्ही तीन दिनों मे ईद उल अज़हा यानि की बकरा ईद के मौके पर कुर्बानिया होती है ।
बकरा ईद पर कुर्बानी के लिए कौन-कौन से जानवर जायज है ?
बकरा ईद यानि की ईद उल अज़हा के मौके पर कुर्बानी के लिए जो जानवर जाएज है उनके नाम और किस जानवर मे कितने लोग हिस्सा ले सकते है इसकी जानकारी के साथ नीचे लिख रहे है ।
- बकरा / भेड़ – फकत 1 के लिए ही
- गाए / भैंस – 7 लोग इसको साझेदारी मे कुर्बान कर सकते है
- ऊंट – 7 लोग इसको भी साझेदारी मे कुर्बान कर सकते है
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कुर्बानी के जानवर के लिए क्या-क्या शर्तों का होना लाजिम है ?
कुर्बानी के जानवर के लिए सबसे पहले तो जानवर सहमंड और बिना किसी बीमारी के होना चाहिए ।
उसके बाद मे अगर बकरी या भेड़ है तो इसकी उम्र कम से कम 1 साल तो होनी चाहिए और अगर गाए या भैंस है तो 2 साल की तो हो और अगर ऊंट है तो 5 साल का होना चाहिए ।
इसके अलावा जानवर अंधा, लंगड़ा, बहुत दुबला-पतला, बीमार या कटे-फटे कान-पुंछ वाला जानवर कुर्बानी के लिए जाएज नहीं है।
कुर्बानी कैसे की जाती है ?
कुर्बानी कैसे करे इसके जवाब को आसान करने के लिए हमने इसको 4 हिस्सों मे बाटा है।
(01) नियत करे
नियत असल मे दिल के पक्के इरादे को कहते है आप ये नियत करले की ये मै अल्लाह पाक के लिए कुर्बानी कर रहा हूँ और हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम की सुन्नत अदा कर रहा हूँ ।
(02) बिस्मिल्लाह पढ़ कर जिबा करे ।
जिस वक्त जानवर की गर्दन पर छुरी फेरे उससे पहले बिस्मिल्लाही अल्लाहु अकबर कहने से पहले ये दुआ पढे जो नीचे फोटो मे दिखाई जा रही है इसके जिसकी रकम लगी है उसका नाम भी बोला जाएगा लेकिन अगर नहीं याद या पढ़ना भी नहीं आता तो नियत करके बिस्मिल्लाही अल्लाहु अकबर कह भी कर सकते है कुर्बानी हो जाएगी ।
(03) खून बहने दे
जब आप जानवर की गर्दन पर छुरी चला दे उसके बाद जल्दी न करे बल्कि जानवर को पकड़े रखे और खून बहने दे और इसमे 2 बाते याद रखे की जानवर का चेहरा काबे की तरफ होना चाहिए और जिस छुरी से आप गर्दन फेर रहे है वो बहुत पेनी होनी चाहिए इससे जानवर को ज्यादा तकलीफ नहीं होनी चाहिए जब ये ठंडा पढ़ जाए तब ही सर अलग करे ।
(04) गोस्त को 3 हिस्सों मे तकसीम करके बाट दे
जब आप गोस्त की बोटी-बोटी कर चुके हो तो अब इसके तीन हिस्से किए जाए।
- पहला हिस्सा खुद के लिए
- दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों के लिए
- तीसरा हिस्सा गरीबों के लिए
ईद उल अज़हा के मौके पर कुर्बानी करने के फायेदे और सवाब क्या-क्या है ?
(01) अल्लाह पाक रिजा और सवाब
बकरा ईद के मौके पर कुर्बानी करने से अल्लाह पाक की रहमत अता होती है और ये गुनाहों का भी कफ़फारा यानि की गुनाहों का मिटाने का जरिया भी बनती है ।
(02) समाज मे बराबरी
कुर्बानी असल मे हर को एक करने का भी काम करती है इसलिए ही इसमे गरीबों को भी अच्छा खाना नसीब होता है, जिससे समाज मे भाईचारा बढ़ता है और मुहब्बत मे भी इजाफा होता है ।
(03) तकवा, परहेजगारी जैसी सलाहियात का निखरना
इस्लाम मे जब कोई बंदा या बंदी कुर्बानी करती है तो कुर्बानी करने से इंसान मे अल्लाह की राह मे खर्च करने की नियत इसके साथ ही तकवा, परहेजगारी जैसी सलाहियात पैदा होती है ।
ये भी जाने इस्लाम मे निकाह कैसे होता है
आखिरी अहम बात
इस्लाम मे कुर्बानी करना साहिब ए निसाब पर वाजिब है और ये हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम की सुन्नत भी है ये अल्लाह पाक की रिजा के लिए बहुत अहम तरीन जरिया है हम मे से जो भी साहिब ए निसाब हो तो उसे कुर्बानी जरूर करनी चाहिए और अल्लाह पाक की राह मे अपनी नेमतों को कुर्बान करने का जज्बा भी रखना चाहिए ।