हज़रत अबू बकर सिद्दीक कौन थे । Hazrat Abu Bakar Siddique kaun the

” हज़रत अबू बकर सिद्दीक कौन थे ? “ ये सवाल हर उस शख्स के जहन मे उठता है जो इस्लाम की तारीख और पहले खिलाफत के बारे मे जानना चाहता है और उन लोगों के दिलों मे भी आता है जो ये देखना चाहते है के एक आशिक ए रसूल होता कैसा है और एसा आशिक ए रसूल के जिसके बारे मे तमाम नबियों के सरदार ने खुद कह दिया हो के सबकी भलाईयो का बदला तो मै दे सकता हूँ।

लेकिन अबू बकर की भलाई का बदला तो रब से ही दिल वाऊँगा मेरे अजीजों हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू इस्लाम के पहले खलीफा थे और हुज़ूर नबी ए रहमत, खुदा के हबीब के सबसे ज्यादा करीब और खास दोस्त और वफ़ादार साथी भी थे । आज के इस पोस्ट मे हम उनकी खिलाफत जिंदगी, उनका इस्लाम मे किरदार, उनकी खिलाफत और उनकी अज़ीम कुर्बानियो का जाएजा करेंगे ।

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और इंशा अल्लाह अगर आप इस पोस्ट को मुकम्मल पढ़ोगे तो आपको पता चलेगा के वाकई अबू बकर हकीकत मे ही अव्वल थे और उनकी मुहब्बत हुज़ूर के लिए किस लेवल के वो आशिक ए रसूल थे ये भी आपको पता चलेगा ।

हजरते अबू बकर सिद्दीक कौन थे ?

” सिद्दीक था जिसका लकब, सच्चाई जिसकी पहचान थी,

नबी का साथी था वो, जिसका ईमान मिसाल था ।

माल-ओ-जान सब लुटा दिया दीन-ए-हक के लिए,

हजरत अबू बकर सिद्दीक, इस्लाम का रोशन चिराग था । “

कुरान को कैसे पढ़ना चाहिए ?

हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू का असल नाम अब्दुल्लाह इब्ने अबू कहफा था । आप कुरैश कबीले से तालुक रखते थे और मक्का शरीफ मे पैदा हुए । ” अबू बकर ” आपका लकब था और सिद्दीक का लकब खुद हुज़ूर पुर नूर, हबीब ए खुदा ने उन्हे उस वक्त दिया जब उन्होंने मेराज का वाकिया बिना किसी शक के मान लिया यही बात उनकी ईमान की पाकी और वफादारी को साबित करती है ।

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नसब और खानदानी पेशा

हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू का तालुक कुरैश के बनी ताइम कबीले से था । आप एक शरीफ और ताजिर घराने से तालुक रखते थे । तिजारत उनका पैशा था और आप मक्का शरीफ के अजीम और ईमानदार ताजिरों मे शामिल थे । आपका मा-अशी हाल मजबूत था लेकिन जब इस्लाम कुबूल किया तो अपनी सारी दौलत दीन की खिदमत मे लगा दी। ये है हज़रत ए अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू ।

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हज़रत अबू बकर का इस्लाम कबूल करना

आप सबसे पहले इस्लाम कबूल करने वालों मे से थे जब हुज़ूर पुर नूर, खुदा के हबीब ने नुबूवत का ऐलान फरमाया, तो सबसे पहले जिन लोगों ने इस्लाम कबूल किया उन्मे हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू भी शामिल थे । आप ने हुज़ूर नबी ए रहमत पर बगैर किसी शक के ईमान लाए इस वजह से उन्हे सिद्दीक का लकब दिया गया।

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हुज़ूर नबी ए करीम के सबसे करीबी और सबसे ज्यादा खास दोस्त

हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू हुज़ूर नबी ए करीम के सबसे ज्यादा करीब दोस्त थे जब हुज़ूर ने मक्के शरीफ से मदीने शरीफ हिजरत का फैसला किया तो उनका हम सफर कोई और नहीं बल्कि हज़रत ए अबू बकर सिद्दीक ही थे बाकी मुसलमानों को आपने पहले ही हिजरत करवा दी थी गारे सोर का वाकिया हर मुसलमान के जहन मे ताजा है जहा दोनों ने मिलकर छुप कर हिजरत की थी।

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इस्लाम मे बहुत ज्यादा अहम किरदार

उस वक्त जब पूरा मक्का हुज़ूर नबी ए रहमत का दुश्मन था उस वक्त हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू आप नबी ए करीम के साथ खड़े थे । आप ने अपने माल से गुलामों को आजाद करवाया, उन्हे सबसे मशहूर गुलाम हज़रत ए बिलाल हबशी रदी अल्लाहु ताला अनहू थे उनकी इन कुर्बानियों से इस्लाम को पहली दफा मुआ-शी तौर पर ताकत मिली।

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ग़जवाओ मे आप हज़रत अबू बकर सिद्दीक का हिस्सा

हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू ने हर गजवा मे हिस्सा लिया है गजवा ए बदर, गजवा ए ओहद और गजवा ए ताबूक मे उनका किरदार काबिल ए तारीफ था। गजवा ए ताबूक मे तो उन्होंने अपना तमाम माल अल्लाह के रास्ते मे दे दिया था । मेरे अजीजों आज हम अपने दिलों की कैफियत भी तो देखे के जुमे के दिन 10 rs देने वाला कितना फख्र करता है ।

बल्कि दूसरा न दे तो ये उसको टोकता है और एक ये है हज़रत ए अबू बकर सिद्दीक के पूरा माल ले आये और देकर पीछे हट गए के कही हुज़ूर मुझसे कुछ पूछ न ले किस तरह का ईमान था किस तरह के आशिक ए रसूल थे और एक हम है जो दावे तो बहुत करते है लेकिन जब अमल की बात आती है तो फिर बहुत ज्यादा पीछे हो जाते है ।

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खिलाफत का आगाज

हुज़ूर नबी ए करीम के जाहिरी तौर पर पर्दा करने के बाद मुसलमानों मे पहली बार रहनुमाई का मसला खड़ा हुआ उस वक्त हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू को इजमा से पहला खलीफा बनाया गया हज़रत ए अबू बकर सिद्दीक को खलीफा ए अव्वल बनाने की वजह ये भी थी के एक बार हुज़ूर ने किसी से फरमाया के मै नहीं मिला तो मेरा अबू बकर तो मिलेगा ।

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आप हज़रत ए अबू बकर सिद्दीक की खिलाफत का दौर 2 साल और कुछ महीने ही रहा लेकिन ये दौर इस्लाम के लिए इंतिहाई अहम था । आप हज़रत ए अबू बकर सिद्दीक खुद जाकर गरीबों यतीमों को सहारा देते किसी न किसी तरीके से हर जरूरत मंद की मदद करते और अल्लाह पाक का खूब जिक्र करते इबादत मे मशगूल रहते और जब रात होती तो गरीबों को खान देने के लिए मुँह छुपा कर निकलते ।

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खिलाफत मे अहम फैसले

  1. जंग ए यमामा और मुसाइलमा कजजाब का कत्ल हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू ने इस्लाम के दुश्मन मुसाइलमा कजजाब के खिलाफ जंग की और उन्हे कत्ल करवाया।
  2. जकात इनकार करने वालों के खिलाफ जंग आपने उन लोगों के खिलाफ भी जंग की जो जकात देने से इनकार कर रहे थे ये इस्लाम के निजाम की तहफफुज के लिए जरूरी था ।
  3. कुरान को जमा करना हज़रत ए उमर रदी अल्लाहु ताला अनहू के मशवरह से उन्होंने कुरान ए मजीद को एक किताब की शक्ल मे जमा करवाया ताकि वो महफूज रहे। हालांकि बेशक कुरान ए मजीद की हिफाजत की जिम्मेदारी मेरे रब ने खुद ली है लेकिन ये उसकी कुदरत है के किन से क्या काम ले ले ।

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आप हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू की शख्सियात और आदात

हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू इंतेहाई नरम मिजाज, शफीक और मुतावाजी शख्स थे और वो हमेशा से ही अल्लाह पाक से डरने वाले और हुज़ूर नबी ए रहमत के हुक्म के पाबंद थे । आप के जिंदगी का हर पहलू इस्लाम के उसूलों का आईना ही रहा।

एतिकाफ क्या होता है तफसील से जानिए ?

आप हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला से हुज़ूर को बहुत ज्यादा प्यार था जब हज़रत अबू बकर ने देखा का हुज़ूर ने तमाम बेवाओ से निकाह किए है तो फरमाया के हुज़ूर किसी कुवारी पर भी करम कीजिए लिहाजा इस तरीके से आप हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू ने अपनी बेटी हजरते आयेश रदी अल्लाहु ताला अन्हा से निकाह करने के लिए हुज़ूर की बारगाह मे अर्ज की।

तब हुज़ूर ने हज़रते आयेशा से निकाह किया और आपको तमाम बीवीओ मे सबसे ज्यादा हजरते आयेशा सिद्दीका से बहुत ज्यादा प्यार था।

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हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू की वफ़ात

हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू ने 63 साल की उम्र मे वफ़ात पाई उनकी कब्र हुज़ूर नबी ए रहमत के साथ ही मस्जिद ए नबवि मे है ये उनकी अजमत की इंतेहाई मिसाल है के उन्हे नबी ए करीम के करीब ही दफन किया गया है।

कज़ा ए उमरी नमाज का तरीका क्या है ?

जब आप हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू की वफ़ात होने वाली थी तब आपने इरशाद फरमाया था के मेरे जिस्म को हुज़ूर के रोज़े के पास लेकर जाना अगर हुज़ूर इजाजत दे दे तो मुझे हुज़ूर के पास ही दफना देना और एसा ही हुआ जब हज़रत ए अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू को हुज़ूर के मज़ार के पास ले कर गए तो आवाज आई के यार को यार के पास ही दफना दो ।

मेरे प्यारो कितने बड़े नसीब के थे हज़रत ए अबू बकर सिद्दीक के हुज़ूर के बरार ही दफन है क्या शान है आपकी, अल्लाह पाक हम सबको भी हज़रत ए अबू बकर सिद्दीक की हुज़ूर से मुहब्बत का सदका अता फरमाए आमीन सुम्मा आमीन ।

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हज़रत अबू बकर सिद्दीक कौन थे – आखिरी नतीजा

अगर आप ये सोच रहे है के हज़रत अबू बकर सिद्दीक कौन थे ” तो इसका जवाब ये है के वो इस्लाम के पहले खलीफा, हुज़ूर के सबसे अजीम साथी और सबसे ज्यादा कुर्बानी देने वाले मुसलमान थे ।

आप की जिंदगी हर एक मुसलमान के लिए एक मिसाल है के आशिक ए रसूल क्या होता है और उसको कैसा होन चाहिए और उनकी वफादारी, ईमान और जज़्बात ने इस्लाम की बुनियाद को मजबूत किया ।

नमाज के वाजिबात कितने है और कौन-कौन से है ?

एक आशिक ए रसूल को कैसा होना चाहिए इसका जवाब आपको हज़रत ए अबू बकर सिद्दीक को पढ़ कर मिल जाएगा आपकी जिंदगी का हर एक लम्हा हर एक पल बस हुज़ूर की मुहब्बत मे ही गुजरा ! क्या नसीब है ये भी अल्लाह-अल्लाह ।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

(01) हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू का असली नाम क्या था ?

आपका असली नाम अब्दुल्लाह इब्ने कुहफा था ।

(02) आपको ” सिद्दीक ” का लकब क्यू दिया गया ?

इस्लाम मे हराम चीजे क्या-क्या है और किस वजह से है ?

हुज़ूर नबी ए रहमत के मेराज के वाकिया पर बगैर किसी शक के यकीन करने की वजह से हुज़ूर ने आपको सिद्दीक के लकब से नवाजा ।

(03) हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू ने इस्लाम के लिए क्या-क्या कुर्बानियाँ दी ?

अपना माल, वक्त और जिंदगी तक हुज़ूर के दीन पर कुर्बान कर दी गुलामों को आजाद करवाया और जंगों मे हिस्सा लिया ।

नमाज की कितनी शर्ते है और कौन-कौन सी है ?

(04) आप हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू की वफ़ात कब हुई ?

आप हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू की वफ़ात 13 हिजरी मे हुई और उन्हे मस्जिद ए नबवि मे दफन किया गया ।

(05) हज़रत अबू बकर सिद्दीक कौन थे इस्लाम के हवाले से ?

आप हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू इस्लाम के पहले खलीफा रहे और हुज़ूर नबी ए करीम के सबसे ज्यादा करीबी साथी और दीन के अज़ीम रहनुमा थे ।

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खुलासा ए कलाम

हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू की जिंदगी इस्लाम का रोशन बाब है हर एक मुसलमान को चाहिए के वो आपकी जिंदगी से सबक हासिल करे और अपनी जिंदगी मे उनके जैसे अखलाक को, वफादारी को और जज़्बात को पैदा करे ।

अगर आप भी कभी ये सोचते है के ” हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु ताला अनहू कौन थे ” तो याद रखिए वो-वो शख्स थे जिन्होंने अपनी हर एक चीज इस्लाम पर कुर्बान कर दी ।

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