एतिकाफ क्या होता है, रमजान के आखिरी 10 दिन का एतिकाफ हिन्दी मे

अस्सलामू अलैकुम, आज के इस पोस्ट मे हम जानेंगे की एतिकाफ क्या होता है और रमजान शरीफ के महीने मे भी जो लोग एतिकाफ करते है उनका क्या तरीका होता है किस तरीके से एतिकाफ के लिए बैथा जाता है और कौन-कौन एतिकाफ कर सकता है इसके लिए क्या शर्ते है और भी कई सारे सवालों के जवाब आपको एतिकाफ के हवाले से इस पोस्ट मे मिलने वाले है तो उम्मीद है की आप इससे यकीनन फायेदा हाशिल करोगे ।

एतिकाफ कहते किसको है ?

एतिकाफ की नियत से अल्लाह के वास्ते मस्जिद मे ठरने का नाम एतिकाफ है और ये तीन तरह का होता है ।

  1. एतिकाफ ए वाजिब
  2. एतिकाफ ए सुन्नत ए मोकेदा
  3. एतिकाफ ए मुस्तहब

अब इन तीनों एतिकाफ को 1-1 करके अच्छे से समझते है जिससे आपके सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे और आपको इसकी सही जानकारी भी हो जाएगी ।

(01) एतिकाफ ए वाजिब

एतिकाफ ए वाजिब ये नजर का एतिकाफ है जैसे किसी ने मन्नत मानी की फला काम हो जाएगा तो मै एक दिन या दो दिन का एतिकाफ करूंगा या करूंगी तो अब ये एतिकाफ ए वाजिब हुआ यानि की इसको एतिकाफ करना वाजिब है और इसका पूरा करना जरूरी है याद रखिए की एतिकाफ ए वाजिब के लिए रोजा रखना शर्त है बगैर रोज़े के सही नहीं ।

(02) एतिकाफ ए सुन्नत ए मोकेदा

एतिकाफ ए सुन्नत ए मोकेदा ये रमजान के पूरे अशरे आखिरा यानि की आखिर के 10 दिन मे किया जाता है यानि की 20वे रमजान को सूरज धुबते वक्त एतिकाफ की नियत से मस्जिद मे मोजूद हो और 30वे को सूरज डूबने के बाद या 29वे को चांद होने के बाद निकले तो यही एतिकाफ ए सुन्नत ए मोकेदा कहलाता है । याद रखिए की अगर 20 वी तारीख को बाद नमाज ए मगरीब एतिकाफ की नियत की तो सुन्नते मोकेदा अदा न होगी ।

एतिकाफ ए सुन्नत ए मोकेदा की अहमियत

एतिकाफ ए सुन्नत ए मोकेदा की अहमियत ये है की ये एतिकाफ ए सुन्नत ए मोकेदा किफ़ाया है के अगर सब छोड़ दे तो सब पकड़े जाएंगे और अगर एक ने भी कर लिया तो सब छूट जाए और इस एतिकाफ मे रोजा शर्त है मगर रमजान के रोज़े ही काफी है लेकिन रखने पूरे है ।

(03) एतिकाफ ए मुस्तहब

एतिकाफ ए वाजिब और एतिकाफ ए सुन्नत ए मोकेदा के अलावा जो भी एतिकाफ किया जाए वो मुस्तहब है और एतिकाफ ए मुस्तहब के वास्ते रोजा शर्त नहीं ये थोड़ी देर का भी हो सकता है, मस्जिद मे जब भी जाए तो एतिकाफ की नियत कर ले थोड़ी ही देर मस्जिद मे रह कर चला आए जब चला आएगा तो एतिकाफ खतम हो जाएगा नियत मे सिर्फ इतना काफी है के मै ने खुदा के वास्ते एतिकाफ ए मुस्तहब की नियत की ।

क्या खवातींन हजरात भी एतिकाफ कर सकती है ? अगर हा तो कहा और कैसे ?

जी हा, जिस तरह मर्द हजरात एतिकाफ कर सकते है इसी तरह खवातींन हजरात भी एतिकाफ कर सकती है लेकिन खवातींन हजरात अपने घर की उस जगह मे एतिकाफ करे जो जगह उसने नमाज के लिए मुकर्रर की हो और एतिकाफ वाले ओर वाली को बगैर उज्र यानि बिना हाजत के निकलना हराम है । अगर ये एतिकाफ की जगह से बिला उज्र निकली तो इसका एतिकाफ टूट जाएगा अगरचे भूल कर ही निकली हो और यही मसला मर्द के लिए भी है ।

एतिकाफ वाले और वाली किन उज्र मे बाहर निकल सकते है एतिकाफ के दौरान ?

2 उज्र एसे है जिनमे मर्द हजरात निकल सकते है और इन्ही 2 मे से 1 उज्र एसा है की उसमे औरत भी बाहर निकल सकती है इनके अलावा अगर किसी भी हालत मे बाहर आए तो एतिकाफ टूट जाएगा और वो 2 उज्र ये है ।

  1. तबई
  2. शरई

तबई उज्र क्या है ? ( मर्द और औरत दोनों के लिए )

तबई उज्र ये है की जैसे पेशाब, पखाने के लिए या वुजू के लिए जाना औरत के लिए बस यही तक है इसके अलावा मर्द के लिए ये भी है की अगर मस्जिद मे भी वुजू खाना अगर मस्जिद मे न बनी हो तो ये बाहर पास कही वुजू कर सकता है तो इसके लिए ये बाहर निकल सकता है तो ये हुआ तबई उज्र ।

शरई उज्र क्या है ? ( फकत मर्द के लिए )

शरई उज्र ये है की अगर जिस मस्जिद मे एतिकाफ किया है वो बहुत छोटी हो और वहा जुमा की नमाज न होती हो तो इस लिहाज से ये जुमा पढ़ने के लिए बड़ी मस्जिद या जुमा मस्जिद जो पास मे हो वहा जा सकता है इसको कहते है शरई उज्र ।

इन दोनों उजरों के सिवा किसी और वजह से अगर थोड़ी देर के लिए भी एतिकाफ की जगह से बाहर जाएगा तो एतिकाफ टूट जाएगा चाहे भूले से ही जाए ।

एतिकाफ मे क्या करते है या क्या पढ़ना चाहिए ?

एतिकाफ वाला या वाली न तो चुप रहे और न ही बात करे बल्कि जितना हो सके कुरान शरीफ की तिलावत करे, हदीसो को पढे समझे और दुरूद शरीफ की कसरत करे इल्मे दीन का दर्स और तदरीस करे इसके साथ ही अंबिया और औलिया और स्वाहिलीन के हालात पढे या दीनी बाते लिखे।

अगर एतिकाफ किसी वजह से तोड़ दे तो क्या हुक्म है शरीयत मे ?

जैसा की हम ऊपर आपको बात चुके है की एतिकाफ 3 किस्मों का होता है और जब कोई मर्द या औरत एतिकाफ तोड़ता है या तोड़ती है तो तीनों एतिकाफ पर अलग-अलग ही हुक्म लगेगा शरीयत ए मुस्तफा मे तो चलिए जानते है।

एतिकाफ ए मुस्तहब तोड़ा तो ?

अगर एतिकाफ ए मुस्तहब जिसको निफली एतिकाफ भी कहा जाता है तो इसकी कज़ा नहीं है लेकिन जहा तक हो सके तो एक बार आप एतिकाफ की नियत करले तो जीतने वक्त की नियत की है उतना वक्त एतिकाफ करना चाहिए खुलासा ए कलाम ये है की इसको तोड़ने से इसकी कोई कज़ा तो नहीं लेकिन तोड़ने से बचना चाहिए ।

एतिकाफ ए सुन्नत ए मोकेदा यानि रमजान के आखिरी 10 दिन का एतिकाफ तोड़ा तो ?

एतिकाफ ए मोकेदा तोड़ा तो जिस दिन तोड़ा फकत उस एक दिन की ही कज़ा करे पूरे 10 दिनों की कज़ा वाजिब नहीं होगी लेकिन जहा तक हो सके इससे भी बचे की जब आप एक बार नियत कर ले तो कोशिश करे की पूरे 10 तक ही एतिकाफ मे बैठे क्योंकि ये एतिकाफ बहुत कम ही लोगों को नसीब होता है ।

एतिकाफ ए वाजिब तोड़ा तो ?

एतिकाफ ए वाजिब तोड़ा तो इसमे ये है की अगर किसी मुकर्रर महीने की मन्नत थी तो बाकी दिनों की कज़ा करे और ये याद रखे की ये एतिकाफ जिस भी वजह से तोड़ा फिर चाहे वो कसदन हो या बिला कसदन बहर हाल कज़ा वाजिब ही होगी यानि की दुबारा एतिकाफ करना ही होगा ।

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