नमाज के वाजिबात। Namaz ke wajibat

नमाज के वाजिबात क्या होते है ?

वाजिब का मतलब होता है वो अमल जो फर्ज के करीब हो लेकिन उसका दर्जा फर्ज से थोड़ा कम हो नमाज मे कुछ चीजे एसी होती है जो वाजिब होती है अगर उन्मे से कोई छूट जाए तो नमाज दुबारा पढ़ना जरूरी नहीं होता लेकिन सजदा सैफ करना पड़ता है अगर वाजिब को जान बूझ कर छोड़ा जाए तो नमाज फ़ासिद यानि के नमाज टूट जाती है ।

नमाज के वाजिबात से मुराद ये है के अगर इनमे से एक भी छोड़ दिया तो नमाज मकरूह ए तहरीमी हो जाएगी हा अगर अगर धोके से झूट गया तो सजदा सैफ करले नमाज हो जाएगी और अगर सजदा सैफ करना भी भूल गया तो अब ये नमाज इसको दुबारा पढ़नी होगी।

नमाज के वाजिबात लगभग नमाज के फराइज के कायम मुकाम रखते है अगर एक भी जानबूझ कर झोड़ा तो नमाज दुबारा पढ़नी होगी आज के इस पोस्ट मे हम नमाज के वाजिबात को तफसील से जानेंगे।

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नमाज के 25 अहम तरीन वाजिबात

  1. तकबीर ए तहरीमा मे अल्लाहु अकबर कहना वाजिब है ।
  2. फरजो की तीसरी और चौथी रकआत के इलावा बाकी तमाम नमाजों की हर रकात मे सूरह फातिहा के बाद कोई दूसरी सूरत मिलाना या कूरआन पाक की एक बड़ी आयत जो छोटी तीन आयतों के बराबर हो या तीन छोटी आयते पढ़ना वाजिब है ।
  3. सूरह फातिहा यानि अल हमद शरीफ का किसी दूसरी सूरत से पहले पढ़ना भी वाजिब है ।

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4. सूरह फातिहा और किसी दूसरी सूरत के दरमियान ” आमीन ” और बिस्मिल्लाह के अलावा कुछ और न कहना ये वाजिब है ।

5. किरात के फौरन बाद रुकुअ करना भी वाजिब है ।

6. एक सजदे के बाद बित्तरतीब दूसरा सजदा करना ।

7. रुकुअ, सुजूद, कौमा और जलसा करना भी वाजिब है ।

8. रुकुअ से सीधा खड़ा होना इसमे ये देखा जाता है के बाज लोग अपनी कमर सीधा नहीं करते जिससे उनका वाजिब झूट जाता है ।

9. जलसा यानि दोनों सजदो के दरमियान सीधा बैठना इसमे भी ये देखा जाता है के बाज लोग जल्द बाजी के चक्कर मे बराबर सीधे बैठने से पहले ही दूसरे सजदे मे चले जाते है इस तरह उनका वाजिब तर्क हो जाता है चाहे कितनी ही जल्दी हो सीधा बैठना लाजिमी है वरना नमाज मकरूह ए तहरीमी यानि दुबारा पढ़नी होगी।

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10. काएदा ए ऊला वाजिब है अगरचे नमाजे नफल हो ये भी याद रखे के नफल मे चार या इससे ज्यादा रकाते एक सलाम के साथ पढ़ना चाहे तब हर 2 रकात के बाद कादा करना फर्ज है और कादा कायदा ए अखीरह है अगर कादा न किया और भूल कर खड़े हो गए तो जब तक उस रकत का सजदा न करले लौट आये और सजदा सैफ करे।

11. अगर नफल की तीसरी रकात का सजदा कर लिया तो चार पूरी करके सजदा सैफ करे सजदा सैफ इसलिए वाजिब हुआ की अगरचे नफल मे हर 2 रकात के बाद काएदा फर्ज है मगर तीसरी या 5 वी रकात का सजदा करने के बाद कायदा ऊला फर्ज के बजाए वाजिब हो गया।

12. फर्ज, वित्र और सुन्नते मोकदा मे अत्ताहीयात के बाद कुछ न बढ़ाना भी वाजिब है ।

13. दोनों काएदो मे अत्ताहीयात मुकम्मल पढ़ना अगर एक लफ़्ज़ भी छूटा तो वाजिब तर्क हो जाएगा और सजदा सैफ वाजिब होगा ।

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14. फर्ज, वित्र और सुन्नते मोकदा के कायेदा ऊला मे अत्ताहीयात के बाद अगर बे खयाली मे अल्ला हुम्मा सल्ली अला मुहम्मद कह लिया तो भी सजदा सैफ वाजिब हो गया और अगर जानबूझ कर कहा तो नमाज लौटाना वाजिब है ।

15. दोनों तरफ सलाम फेरते वक्त लफ़्ज़ अससलामु कहना दोनों बार वाजिब है लफ़्ज़ अलेकुम वाजिब नहीं बल्कि सुन्नत है।

16. वित्र मे तकबीर ए कुनूत कहना वाजिब है ।

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17. वित्र मे दुआए कुनूत पढ़ना भी वाजिब है ।

18. हर फर्ज और वाजिब का उस की जगह होना ।

19. रुकुअ हर रकात मे एक ही बार करना वाजिब है ।

20. सजदा हर रकात मे 2 ही बार करना वाजिब है ।

21. दूसरी रकात से पहले कायदा न करना ।

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22. चार रकात वाली नमाज मे तीसरी रकात पर कायेदा न करना वाजिब है ।

23. आयत ए सजदा पढ़ी हो तो सजद ए तिलावत करना।

24. सजदा ए सैफ वाजिब हुआ तो सजदा सैफ करना भी वाजिब है ।

25. दो फर्ज या दो वाजिब या फर्ज व वाजिब के दरमियान तीन तसबीह की कदर यानि के तीन मर्तबा सुब हान अल्लाह कहने की मिकदार का वक़्फ़ा न होना।

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नमाज के वाजिबात की जरूरत क्या है ?

नमाज के वाजिबात की कुछ खास जरूरते हम आपको बता रहे है के इनकी हाजत किसलिए होती है ।

  • नमाज मे नज़मों जब्त कायम रखने के लिए ।
  • फर्ज और सुन्नत के दरमियान तवाजन बनाए रखने के लिए ।
  • अगर कोई वाजिब झूट जाए तो सजदा सैफ के जरिए उसकी तलाफ़ी हो सके ।
  • दीन मे इबादत को मुकम्मल और पाकीजा रखने के लिए ।

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नतीजा

नमाज़ के वाजिबात ये है अगर इनमे से एक भी झूट गया तो नमाज सही करने के लिए सजदा सैफ करना होगा और अगर सजदा सैफ करना भी भूल गए तो आपकी नमाज मकरूह ए तहरीमी हो जाएगी।

यानि की नमाज दुबारा पढ़नी होगी याद रखे नमाज के वाजिबात नमाज के लिए वाजिब है और वाजिब फर्ज के कायम मुकाम होता है लिहाजा इनका बहुत ख्याल रखना चाहिए इसके साथ ही हमे नमाज के मुस्तहबात पर भी गौर करना चाहिए और जब आज कल आम बाजार की चीज को खरीदने के लिए कितनी गौरो फिक्र की जाती है लेकिन

ये बड़े ही अफसोस की बात सामने आती है के लोग कपड़े के लिए तो तहकीक करते है लेकिन नमाज के लिए नहीं उनको फरक ही नहीं पड़ता के नमाज हो रही है या नहीं जैसे के मानो बस लोगों को दिखने के लिए ही नमाज पढ़ रहे हो अल्लाह-अल्लाह, अल्लाह पाक रहम फरमाए और दीन की सही समझ अता फरमाए ..

आमीन सुम्मा आमीन

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