नमाज की कितनी शर्ते है ? मुकम्मल तफसील के साथ
आपको बता दे के नमाज इस्लाम के पाँच बुनियादी सुतूनों मे से एक है और इसे सही तरीके से अदा करने के लिए कुछ शराइत का पूरा होना जरूरी होता है। आज के पोस्ट मे हम तफसील से समझेंगे के नमाज की कितनी शर्ते है और इनकी अहमियत क्या है ?
याद रखिए के नमाज की शर्ते वो होती है जो के नमाज से बाहर होती है जबकि नमाज के फराईज अलग है जो के नमाज के अंदर होते है हा तकबीर ए तहरीमा दोनों मे शुमार की जाती है बहर हाल आप ये जान ले के आपको नमाज पढ़नी है तो ये शर्ते होना लाजिम है जो के हम आगे आपको बता ने जा रहे है।
नमाज की कितनी शर्ते है ?
मजहब ए इस्लाम मे नमाज को दुरुस्त तरीके से अदा करने के लिए कुल 6 शर्ते मुकर्रर की गई है ये ही 6 शर्ते इस्लामी फिकह के मुताबिक लाजिम मानी जाती है अगर इन मे से कोई एक शर्त पूरी न हो तो नमाज नाकिज समझी जाएंगी याद रखे अगर 6 मे से 5 शर्त पूरी हुई और 1 रह गई तब भी नमाज शुरू ही नहीं होगी तो चलिए इन 6 शर्तों को तफसील से समझते है ।
(01) तहारत ( पाकी हासिल करना )
नमाज अदा करने के लिए सबसे पहले इन 3 चीजों का पाक होन लाजिम है अगर इन 3 मे से 1 भी रह गई तो नमाज शुरू ही नहीं होगी ।
- जिस्म का पाक होना जो कोई नमाज पढ़ना चाहता है या चाहती है तो सबसे पहले वो खुद पाक हो और उसके जिस्म पर कोई भी गंदगी न लगी हो।
- कपड़े का पाक होना जो कपड़ा पहनकर नमाज पढ़ना चाहता है या चाहती है तो उस कपड़े का पाक होना लाजिम है अगर नापाक कपड़े से पढ़ी तो नमाज होना तो दूर नमाज शुरू ही नहीं हुई ।
- जगह का पाक होना जिस जगह नमाज पढ़ना चाहता है या चाहती है वो जगह पाक होना भी लाजिम है ना पाक जगह नमाज पढ़ी तो नमाज शुरू ही न होगी।
सबसे पहली शर्त तहारत मे ये तीनों चीजों का पाक होना लाजिमी है अगर 1 भी छूटी तो नमाज शुरू ही न होगी। इसके साथ ही वुजू भी होना चाहिए क्योंकि बे वुजू नमाज नहीं होती है।
(02) सित्र ए औरत का ढकना
सित्र ए औरत मुराद जिस्म का उतना हिस्सा जितना अगर न ढका तो नमाज शुरू ही न होगी और ये मर्द और औरत दोनों के लिए अलग-अलग है।
मर्द के लिए मर्द के लिए सित्र ए औरत उसकी नाबी से लेकर घुटने तक का हिस्सा ढकना नमाज के लिए शर्त है अगर इससे भी कम हुआ तो नमाज शुरू नहीं होगी ।
औरत के लिए औरत के लिए हुक्म ये है के चेहरे, हथेली और दोनों पाओ के तलवों के अलावा पूरा की पूरा जिस्म छिपाना शर्त है इसके अलावा ये भी याद रखे के अगर औरत ने एसा बारीक कपड़ा पहना जिससे बदन का वो हिस्सा जिस का नमाज मे छुपाना फर्ज है नजर आये या न आये नमाज नहीं होगी ।
आज कल बारीक कपड़ों का रिवाज बढ़ता चला जा रहा है एसा कपड़ा पहनना जिससे सित्र ए औरत डक न सके तो ये बगैर नमाज के पहनना भी हराम है।
(03) इस्तिकबाले किबला
यानि नमाज मे किबला जिसको काबा शरीफ भी कहा जाता है उसकी तरफ मुँह करना । अगर नमजी ने बिला उजरे शरई जानबूझ कर किबले से सीना फेर दिया अगरचे फौरन ही किबले की तरफ हो गया नमाज फ़ासिद हो जाएगी यानि की नमाज टूट जाएगी।
और अगर बिला इरादा फिर गया और ब कदर 3 बार सुबहान अल्लाह कहने के वाकफ़े से पहले-पहले वापिस किबला रुख हो गया तो नमाज नहीं टूटेगी लेकिन सजदा सैफ वाजिब हो गया ।

एसी जगह जहा किबले का रुख पता न हो ?
अगर एसी जगह पर है जहा किबले का रुख पता न हो और न ही वहा कोई एसा जरिया बन पाए के पहचान कर सके तो अब सोचिए और जिधर किबला होना दिल पर जमे उधर ही रुख कर लीजिए आपके हक मे वही किबला है । अब अगर बाद मे पता चला के किबला दूसरी तरफ था तो अब नमाज लौटाने की हाजत नहीं क्योंकि आपकी नमाज हो चुकी है।
(04) वक्त
वक्त से मुराद ये है के जो नमाज पढ़ी जाए वो उसी नमाज के वक्त के अंदर-अंदर ही पढ़ी जाए । मसलन आज नमाज ए असर अदा करनी है तो यह जरूरी है के असर का वक्त शुरू हो जाए अगर वक्ते असर शुरू होने से पहले ही पढ़ ली तो नमाज न होगी।
3 वक्त मकरूह है यानि इनमे नमाज न होगी ?
- तुलु ए आफताब यानि की फ़जर की नमाज का वक्त जब खत्म हो जाए वहा से 20 मिनट्स तक के वक्त मे नमाज पढ़ना मकरूह है यानि नमाज न होगी।
- गुरूब ए आफताब यानि मगरीब की अजान होने से 20 मिनट्स पहले तक के वक्त मे नमाज मकरूह होती है इस बीच नमाज नहीं होती है ।
- जहवए कूबरा से लेकर जवाल ए आफताब तक यानि के दिन का वो हिस्सा जिस हिस्से मे सूरज बिल्कुल सर के ऊपर हो जाता है इस वक्त मे नमाज नहीं होगी अगर किसी ने पढ़ी भी तो मकरूह होगी।
याद रखे के इन तीनों वक्त मे कोई नमाज जाइज नहीं न फर्ज न वाजिब न नफल न कज़ा हा अगर इस दिन की नमाज ए असर न पढ़ी तो पढ़ ले अलबत्ता इतनी ताखीर करना भी हराम है।
(05) नियत
नियत दिल के पक्के इरादे का नाम है, जबान से नियत करना जरूरी नहीं अलबत्ता दिल मे नियत हाजिर होते हुए जबान से कह लेना बेहतर है, नियत मे जबान से कहने का एतिबार नहीं यानि अगर दिल मे मसलन जोहर की नियत हो और जबान से लफजे असर निकला तब भी जोहर की नमाज हो गई।
फर्ज नमाज मे नियते फर्ज जरूरी है मसलन दिल मे ये नियत हो के आज की जोहर की फर्ज नमाज पढ़ता हूँ या पढ़ती हूँ । इसके साथ ही बता दे के दुरुस्त ये है के नफल, सुन्नत और तरवीह मे मुतलक नमाज की नियत काफी है मगर एहतियात यह है के तरावीह या सुन्नत ए वक्त की नियत करे और बाकी सुन्नतों मे सुन्नत या मुस्तफा जाने रहमत की पैरवी की नियत करे।
(06) तकबीर ए तहरीमा
इसका मतलब ये है के नमाज को अल्लाहु अकबर कह कर शुरू करना जरूरी है और ये शरत है अगर बगैर कहे नमाज शुरू कर दी तो नमाज शुरू ही नहीं होगी लफजे अल्लाहु अकबर कह कर आप नियत बांध सकते है और फिर आगे आप अपनी नमाज पढ़ सकते है।
याद रखे लफजे अल्लाह को ” आल्लह ” या अकबर को ” आकबर ” या अकबार कहा तो नमाज न होगी बल्कि अगर इन के मायने फ़ासिद समझ कर जान बूझ कर कहे तो ईमान से भी चला जाएगा।