आप से माजी मे कोई गुनाह हुआ और फिर आपने अल्लाह के हुज़ूर तौबा करली और सच्चा और पक्का अहद किया के अब गुनाह नहीं करूंगा या नहीं करूंगी लेकिन अगले ही दिन आपस वही गुनाह दुबारा हो जाता है और एसा होता ही रहता है के आप गुनाहों से तौबा करते हो लेकिन बार-बार गुनाह होते ही रहते है ।
असल मे आप बताये के तौबा करने के बाद फिर गुनाह कर लेना एक एसी हकीकत है जिसमे अक्सर लोग फसे हुए है और एक कड़ी बनी हुई है के इसको केसे दूर किया जाए हर एक मुसलमान अपनी मे गलतिया करता है और जब उसे अपनी गलती का एहसास होता है तो फिर वो अल्लाह से माफी माँगता है तौबा करता है ।

उसके दिल मे सुधार लाने की नियत होती है लेकिन एसा होता है के तौबा करने के बाद भी इंसान गुनाह मे मुब्तला हो जाता है तो एसे मे क्या करना चाहिए ? और क्या अल्लाह पाक एसे लोगों को माफ कर देगा ? और सच्ची तौबा कैसे की जाती है ?
इन तमाम सवालों के जवाब हदीस ए पाक और कुरान ए मजीद की रोशनी मे जानेंगे उसके बाद इंशा अल्लाह आप जिस तरह से तौबा करोगे वो इंशा अल्लाह खालिक ए मौला की बारगाह मे कुबूल होगी आमीन ।
तौबा क्या है और कुरान क्या कहता है इसके बारे मे ?
हकीकत मे तौबा का मतलब होता है के आप अपने गुनाहों पर सच्ची नदामत महसूस करे और अल्लाह से माफी मांगे और पक्का अहद यानि वादा करे के दुबारा एसी गलती नहीं करूंगा या करूंगा और इस गुनाह को छोड़ कर अल्लाह की रिजा की तरफ कदम बड़ाऊँगा ।
इसके बार मे अल्लाह पाक कुरान ए मजीद मे इरशाद फरमाता है के, ” और अपने रब से माफी मांगों फिर उसकी तरफ पलट आऊ । ” ( सूरह हुद 11:3 )
तौबा करने के बाद फिर गुनाह कर लेना इसका मतलब ये नहीं के पहली तौबा बेकार थी असल मे दीन ए इस्लाम मे इंसानी फितरत की समझ और हमे ये बताता है के इंसान गलती करने वाला है ।
हमारे प्यारे आका, हुज़ूर नबी ए रहमत ने इरशाद फरमाया के, ” हर इंसान गुन्हागार है और सबसे बहतरीन गुनहागार वो है जो तौबा करता है । ” ( तिरमिजी ) मेरे अजीजों इस हदीस ए पाक से हमे मालूम हुआ के गुनाह के बाद तौबा और फिर से तौबा करते रहना एक मुसलमान के लिए जरूरी है ।
लिहाजा तौबा करने से मोमिन का दिल भी नरम रहता है ।
तौबा करने के बाद फिर गुनाह क्यों होता है ?
तौबा करने के बाद फिर गुनाह होने के कई सारे सबब हो सकते है जिनसे मे कुछ अहम हम आपको समझाने के लिए नीचे लिख रहे है:
- नफ़स का गलबा: हमारे अंदर का नफ़स हमे बार बार गुनाहों की तरफ खीचता है और कहता है के अरे दुबारा तौबा कर लेना क्या बात है गुनाह करने मे !
- शैतान की चालाकी: शैतान इंसान को मायूसी मे डालने की कोशिश करता है ताके वो तौबा से हाथ उठा ले और दुबारा गुनाह कर ले ।
- माहौल का असर: ग़लत लोगों के साथ असर जिसको माहौल कहा जाता है उसका बहुत आपके जहन पर असर पड़ता है आप जेसे लोगों के साथ रहते हो वेसे ही हो जाते हो इसलिए नेक लोगों का माहौल इख्तियार करे ।
- तौबा मे कमजोरी: जब तौबा सिर्फ ज़बान से हो और दिल से सही नियत और इरादा न हो तो फिर गुनाह की तरफ दिल बहुत जल्दी लौटता है और दुबारा गुनाह बहुत आसान हो जाता है ।

क्या तौबा दुबारा कुबूल होती है ?
दीन ए इस्लाम मे अल्लाह पाक की रहमत और मगफिरत को दाएरा बहुत ज्यादा वसी है अगर कोई शख्स तौबा करने के बाद फिर गुनाह कर लेता है तब भी उसके लिए अल्लाह पाकक के पास मुआफ़ी है लिहाजा उसकी नदामत सच्ची होती चाहिए और अल्लाह पाक को पाक जात है मा से भी 70 गुना ज्यादा प्यार करता है ।
अल्लाह पाक कुरान ए मजीद, फुरकान ए हबीब मे इरशाद फरमाता है, ” बेशक अल्लाह सब गुनाह माफ कर देता है। ” ( सूरह जुमर 39:53 ) मेरे अजीजों हर एक मर्तबा जब भी बंदा इखलास के साथ तौबा करेगा, अल्लाह पाक उसकी तौबा जरूर कुबूल फरमाएगा – चाहे गुनाह कितनी ही बार हुआ हो ।
हदीस ए पाक मे आता है के, ” अगर बंदा गुनाह करे और फिर कहे मेरे रब मुझे मुआफ़ कर दे तो अल्लाह पाक फरमाता है मेरा बंदा जानता है के उसका एक रब है जो गुनाह माफ करता है । ” ( बुखारी ) मेरे अजीजों इस हदीस से साबित हुआ के तौबा करने के बाद फिर गुनाह होने पर बंदा को न उम्मीद नहीं होना चाहिए फिर से तौबा करनी चाहिए और खुद को अल्लाह को राजी करने वाले कामों मे लगाना चाहिए ।
सच्ची तौबा की अलामते क्या-क्या होती है ?
मेरे अजीजों अगर हम चाहते है के हमारी तौबा भी मजीद मजबूत हो और फिर गुनाह से बचे रहे कभी दुबारा गुनाह न हो तो इसकी कुछ अहम अलामते होती है जो के हमे अपने अंदर उजागर करनी होंगी जैसे:
- गुनाह पर शिद्दत से नदामत महसूस होना ।
- मजीद गुनाह न करने का पक्का इरादा करना ।
- गुनाह से फोरन दूरी इख्तियार कर लेना ।
- पिछले गुनाहों का कफ्फारा करने की कोशिश करना ।
- अपने माहौल को बहतर बनाना यानि के नेक लोगों के साथ वक्त गुजारना ।
तौबा करने के बाद गुनाह से कैसे बचा जाए कुछ अहम राज ?
मेरे प्यारो जब हम तौबा करले तो फिर तौबा करने के बाद गुनाह से बचने के लिए कुछ अहम और खास तरीकों पर चलना होता है जैसे के:

(01) नियत और दिल के पक्के इरादे को मजबूत रखना
अगर हमारे दिल की पक्की नियत नहीं होगी और कमजोर सी नियत रखेंगे तो फिर तौबा भी कमजोर ही होगी इसलिए आप हर एक दिन दुआ करे के अल्लाह पाक आपको गुना से बचाए और नेकी के रास्ते पर चलाए ।
(02) फर्ज इबादात का एहतिमाम करे
अल्लाह पाक ने जो जो अरकान फर्ज करार कर दिए है उनको मजबूती से और वक्त पर अदा करते चले जेसे नमाज, रोजा, जकात, अगर माल दिया है हज भी करे और इनमे पाबंदी रखे इंसान को गुनाह से रोकने के लिए ये फराइज बहुत अहम किरदार अदा करते है ।
जैसा के नमाज के तालुक से कुरान ए मजीद मे अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है के, ” नमाज बुराई और फहशी से रोकती है । ” ( सूरह अंकबूत 29:45 )
(03) शैतानी वसवसों से बचे और ज्यादा से ज्यादा नेकी करे
जब भी शैतानी वसवसा आअये तो आप तुरंत ही तावुज यानि आउजु बिल्ला मुकम्मल पढ़ले और अपने खयालात को मसरूफ़ करे याद रखे शैतान हर एक मोमिन को अलग अलग तरीकों से गुनाह के उग साता है किसी को माल से किसी को बे हयाई से किसी को जिना से जेसे गुनाह से ।
इसलिए गुनाह और शैतान के फरेब से बचने के लिए बहुत जरूरी है के आप ताउवुज की ज्यादा से ज्यादा कसरत किया करे ।
(04) माहौल और दोस्तों को देखे और नेकोकारो के साथ हो जाए
मेरे अजीजों किताबों मे आता है के मोमिन अपने दोस्त के ईमान पर होता है यानि के जेसा आपका दोस्त वेसे आप जेसे आपके दोस्त का माहौल वेसा ही आपका माहौल होगा लिहाजा ये गौर करले के वो नेक दोस्त हो जिनको देख कर आपको खुदा याद आ जाए ।
और ज्यादा से ज्यादा कोशिश करे के खुद को एसे माहौल से जोड़े जो के आपको खुदा की बंदगी और हुज़ूर से मुहब्बत और दीनी और दुनियावी भलाई नसीब कराए ।
(05) रोजाना अपना मुहासबा करे
ये हमारे बुजुर्गों का तरीका भी रहा है के जब वो रात को सोते तो अपने दिन भर का आमाल का मुहासबा करते हम भी उनकी तरह ही अपने आमाल का रोजाना जाएजा लिया करे और जो भी गलतिया हो जाया करे उनको समझ कर दूर किया करे अगले दिन से ।
(06) इल्म हासिल करे
इल्म एक एसा हथियार है के ये आपके लिए एक नूर है नूर जिंदगी मे भी और नूर कब्र मे भी दीन ए इस्लाम मे इंसान के जेहन मे नूर और बसिरत पैदा करता है मेरे अजीजों इल्म से इंसान को अपनी जिंदगी का असल मकसद याद रहता है । जब आपके पास इल्म होगा तो फिर आपके अंदर परहेज गारी भी आएगी ।
क्या बार-बार तौबा करने से मुनाफिक हो जाते है ?
नहीं मेरे अजीजों हमारे दीन ए इस्लाम के मुताबिक बार-बार तौबा करने के बाद फिर गुनाह होने पर भी तौबा करता रहना जरूरी है । ये कोई मुनाफिकत नहीं है बल्कि इंसानी कमजोरी है और अल्लाह पाक की रहमत का इजहार है ।
हदीस ए पाक मे आता है के, ” अल्लाह अपने बंदे से तब तक नाराज नहीं होता जब तक बंदा दुआ और तौबा करता रहता है । ” ( तिरमिजी ) मेरे अजीजों इसलिए आप हमेशा उम्मीद और यकीन के साथ ही अल्लाह पाक की बारगाह मे कसरत के साथ दुआ और तौबा भी करते रहा करे ।
गुनाह से तौबा की दुआ ये है ?
अगर हम से कोई मोमिन तौबा करने के बाद फिर गुनाह से परेशान है तो रोजाना ये दुआ पढे, ” या अल्लाह मुझे माफ फरमा, मुझ पर रहम फरमा, मुझे हिदायत दे, मुझे आफ़ियत दे और मुझे रिज्क अता फरमा। ” इसके अलावा भी अस्तगफि रुल्लाह को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लीजिए ।
इंशा अल्लाह इसके आपको बे शुमार फायेदे हासिल होंगे और आपके दिल से गुनाहों की जंग दूर होगी दिल नरम होगा ईमान ताजा होगा, आपके अखलाक मे मुहब्बत और शफकत आएगी जिंदगी मे सुकून आएगा ।
खुलासा ए कलाम
मेरे अजीजों याद रखे के तौबा करने के बाद फिर गुनाह करने के एक मतलब ये भी है के कही न कही आपकी तौबा सच्ची नहीं थी या फिर एक पहलू ये भी है के ये इंसान की फितरत हो जाती है ।
लेकिन इसका मतलब ये नहीं के बंदा हार मान ले मेरे अजीजों अल्लाह पाक रहमत बहुत बड़ी है उसमे हजारों लाखों नहीं बल्कि करोड़ों मोमिन जो एसे है उन को मुआफ़ी मिलती है बद नदामत सच्ची हो इसके साथ ही बहतरी की कोशिश भी करते रहना और अल्लाह पाक पर मुकम्मल तौर पर भरोसा रखिए वो हमारा खालिक है और हम उसकी मखलुख है ।
आपसे गुनाह बार बार होते है कोई बात नहीं आप तौबा करते रहे कब तक आप कामयाब नहीं होंगे एक न एक दिन अल्लाह पाक आपको इस्तिकामत जरूर देगा ।