इमाम अहमद रजा खान: एक अजीम आलिम ए दीन के साथ और क्या-क्या थे ?
आपको बात दे के इमाम अहमद रजा खान इस्लामी दुनिया के एक अजीम आलिम, फकीह, मुहददिस और मुजद्दीद भी थे। वो अपनी इल्मी बसीरत, तकवा और दीनी इस्लाम की खिदमत के लिए मशहूर है उन्होंने कई इस्लामी मोजूआत पर तफ़सीली तहरीरी लिखी है और अहले सुन्नत वल जमात के बड़े फकीह और मुफ़अक्कीरिन मे भी शुमार किए जाते है इनकी तालीमात आज भी दुनिया भर मे लाखों मुसलमानों के लिए एक बहुत बड़ा हिदायत का रास्ता है।
इमाम अहमद रजा खान कौन था, इनको आला हज़रत क्यों कहते है, इनको दीनी तौर पर क्या खिदमत रही ? इनको कहा से खिलाफत मिली ? इमाम अहमद रजा खान ने कौनसे कलाम लिखे इन्होंने किस तरह दीन की खिदमत की ? इनके उस्ताद ए मोहतरम कौन थे और भी तमाम सवालों का जवाब आपको आज के इस पोस्ट मे मिल जाएगा अगर आप इस पोस्ट को पूरा पढ़ते है तो आपको कही और इनकी जानकारी के लिए जाना नहीं पढ़ेगा ।
इमाम अहमद रजा खान कौन थे ?
इमाम अहमद रजा खान जिनको आज अहले सुन्नत हजरात आला हज़रत के नाम से भी जानते है ये फकत एक जात का नाम नहीं बल्कि ये एक ही वक्त मे एक नजरिया था,इ अकीदा था, मसलक था, अंजुमन था, मुजद्द-इद था, शरीयत-तरिकत का माहताब बादशाह था, मुफ्ती था, मुदररिस था, मुहददिस था बल्कि वो एक आलिम नहीं बल्कि इल्म का मौजे मारता हुआ समुन्द्र था इमाम अहमद रजा खान कौन था इस सवाल का जवाब अगर आप कम शब्दों मे जानना चाहे तो यो कहे के,
जितनी किताबे उस वक्त के कुल औलमा हजरात ने लिखी उससे कई गुनाह ज्यादा बरेली के इमाम अहमद रजा खान ने लिखी इसलिए ही औरों को तो हज़रत कहा गया लेकिन इनको आला हज़रत कहा जाता है आज भी आशिक ए रसूल इनको किताबों से इनके शेरो मे इनके नातिया कलाम से रोशनी और हिदायत हासिल करते है ।
इमाम अहमद रजा खान की बचपन से ही इल्मी सलाहियते किस पैमाने की थी ?
(01) पहला फतवा महज 4 साल की ही उम्र मे ही लिख दिया था
आपको बता दे के जब इमाम अहमद रजा खान फकत 4 साल के थे तब उनके वालिद साहब हज़रत मौलाना नकी अली खान ने मज़ाक मे उनसे मजहबी मसले का हल पूछा तो इतनी छोटी उम्र मे ही इमाम अहमद रजा खान ने कुरान और हदीस की रोशनी मे उसका बिल्कुल सही जवाब दिया । उनके जवाब से मुत्तफ़िक होकर उनके वालिद साहब ने कहा, ” मेरा बेटा आने वाले वक्त मे बहुत बड़ा आलिम बनेगा। “
(02) 7 साल की उम्र मे तर्जुमा-ए-कुरान
7 साल की उम्र मे ही उन्होंने अरबी और फारसी मे इतनी महारत हासिल कर ली थी के कुरान का तर्जुमा करने लगे एक बार उनके उस्ताद ने उनसे कुरान की एक आयत का मतलब पूछा, तो उन्होंने गहराई से समझाया के सभी उस्ताद हैरान रह गए। इस बात से भी आप इनके इल्म का अंदाजा लगा सकते हो ।
(03) पहला खुतबा 10 साल की उम्र मे
जब वो 10 साल के थे, तो जुमे की नमाज़ मे उनके वालिद साहब ने उन्हे मिंबर पर बैठा कर खुतबा देने को कहा उन्होंने इतनी फसीह अरबी और उर्दू मे खुतबा दिया के मस्जिद मे मौजूद तमाम औलमा हैरान और दंग रह गए ।
(04) बचपन से ही फतवा लिखने की सलाहियत
13 साल की उम्र मे ही उन्होंने अपना पहला फतवा लिखा जो उनके वालिद साहब ने चेक किया और उसे बिल्कुल सही पाया इसके बाद वे पूरी जिंदगी इल्म और इस्लाम की खिदमत मे लगे रहे ।
(05) फकत 30 दिन मे कुरान हाफ़िज़
आपको बता दे के इमाम अहमद रजा खान शुरू मे हाफ़िज़ नहीं थे लेकिन जब रमजान का महीना आया तो लोगों ने आपसे अर्ज की के इस बार हम आपके पीछे ही तरावीह सुनेंगे तो आपने रमजान के चाँद देखते ही मगरीब के बाद 1 पारा याद कर लिया और उसको ही तरवीह मे सुना दिया एसा हर रोज करते और इसी तरह पूरे रमजान के महीने मे आपने तरवीह भी सुनाई और आपको मुकम्मल कुरान ए मजीद याद भी हो गया।
इमाम अहमद ने इब्तिदाई जिंदगी और तालीम कहा से हासिल की ?
इमाम अहमद रजा खान की विलादत 14 जून 1856 ईसवी को भारत के उत्तर प्रदेश के शहर बरेली मे हुई इनका पूरा नाम अहमद रजा खान बरेलवी था । इनके वालिद साहब मौलाना नकी अली खान भी एक मुमताज और एक काबिल आलिम ए दीन थे। इमाम अहमद रजा खान ने बचपन ही से इस्लामी उलूम का आगाज किया और सिर्फ 13 साल की उम्र मे फकीह ए इस्लामी मे महारत मे हासिल कर ली।
इमाम अहमद रजा खान की इल्मी खिदमात क्या रही ?
इमाम अहमद रजा खान ने इस्लामी तालीम को एक नई जहत अता की उन्होंने तकरीबन 50 से जाइद मोजूआत पर 1000 से भी ज्यादा किताबे तसनीफ़ करी इनकी मशहूर किताब ” फ़तावा रजविया ” है जो 30 से ज्यादा जिल्दों पर मुशतमिल एक अज़ीम फिकही शाहकार है जो की इनके इल्म की एक झलक महसूस कराती है।
इन्होंने इस्लाम की हकीकी तालीमात को आल किया और बहुत सी गलत फहमी का उजाला किया इसके साथ ही इनकी तालीमात का बुनियादी मकसद दीन ए इस्लाम के उसूलों को कायम रखना और मुआ-शरे मे फेली बिद-अत और गुमराहियों का खातिमा था।
अहले सुन्नत वल जमात मे इमाम अहमद रजा खान का किरदार क्या रहा ?
इमाम अहमद रजा खान अहले सुन्नत वल जमात के एक जलीलो कदर पेशवा था। उन्होंने इस्लामी अकाईद की हिफाजत की और देओबन्दी, वहाबी और नेचरी नजरियात का रद्द किया उन्होंने ये वाजह किया के अहले सुन्नत के अकाईद कुरान और हदीस के ऐन मुताबिक है और यही सही रास्ता है ।
इसके अलावा इमाम अहमद रजा खान बरेलवी ने बातिल फिरकों को कई-कई बार तहरीरी शक्ल मे समझाया लेकिन वो नहीं माने तब जाकर उन्होंने एक कीतब लिखी जिसका नाम रखा हुस्सआ मुल हरमैन जिसमे उन सभी बातिल फिरकों का रद्द किया हुज़ूर की शान मे गिस्ताखी कर बैठे थे और सऊदी अरब भेजा और वहा के औलमा हजरात ने उस किताब को पूरा पढ़ कर उसकी ताईद की।

और उस पर दस्तखत भी किए जिससे साबित हुआ के वाकई मे बातिलो ने गुश्ताखी की थी इसके अलावा इनके इल्म और गहरी पकड़ शरीयत और तरिकत पर इस कद्र थी के लोगों ने उस दौर के लिए उनको एक लकब से नवाजा कहा के इस दौर मे हज़रत तो कई सारे है लेकिन इनको यानि इमाम अहमद रजा खान बरेलवी को आला हज़रत ही पुकारा जाए ।
इमाम अहमद रजा खान के दीनी नज़रियात क्या रहे ?
इमाम अहमद रजा खान की सोच इस्लामी रिवायात और हुज़ूर नबी ए रहमत की सुन्नतों को बरकरार रखने पर ही मबनी थे वो नबी ए करीम, हुज़ूर नबी ए रहमत से बे पनाह मुहब्बत करते थे और इसी मुहब्बत की झलक इनकी नातिया शायरी और तसानीफ़ मे भी मिलती है इनके लिखे हुए नातिया अशआर आज भी पूरी दुनिया मे अकीदत से पढे जाते है।
अल्लाह पाक ने हबीब के चाहने वाले इस इमाम अहमद रजा खान को इस तरह नवाजा और ये कहे के इनकी मुहब्बत हुज़ूर से इतनी थी के इन्होंने एक सलाम लिखा जो के अल्लाह पाक को इतना पसंद आया के आज आलम ए इस्लाम मे हर जुमा की नमाज के बाद ही इन्ही का सलाम पढ़ा जाता है ।
” मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम,
शमए बजमे हिदायत पे लाखों सलाम । “
इमाम अहमद रजा खान की मशहूर किताबे कौनसी रही ?
इमाम अहमद रजा खान ने कई अहम कुतुब तसनीफ़ की जिन मे से कुछ हम लिख रहे है।
- फ़तावा रजविया – फकीह ए इस्लामी पर एक जामा किताब
- कंजूल ईमान – कुरान ए करीम का एक मुस्तनिद और फसीह तर्जुमा
- हिदायतुल मुस्तकीम – हदीस और सुन्नत पर मबनी एक अहम तसनीफ़
इन किताबों मे इस्लामी उलूम का पेश बहा खजाना मोजूद है जो आज भी औलमा ए किराम और तलबा के लिए मश-ऊल राह है ।
इमाम अहमद रजा खान का विसाल और इल्मी वर्सा क्या रहा ?
इमाम अहमद रजा खान 28 अक्टूबर 1921 ईसवी को इस दुनिया से पर्दा कर गए उनके विसाल के बाद भी उनकी तालीमात जिंदा रहे और आज भी लाखों बल्कि करोड़ों अफराद उनके बताए हुए रास्ते पर गामजन है बरेली शरीफ मे इनका मजार ए अकदस मोजूद है जहा पर हर साल उरसे रजवी मनाया जाता है और दुनिया भर से इमाम अहमद रजा खान के अकीदत मंद इसमे शरीक होते है।
बरेलवी तहरीक का नाम कैसे और जमात रजा ए मुस्तफा का इंतिखाब कैसे हुआ ?
आपको बता दे के इमाम अहमद रजा खान ने अपने नजरियात जो के कुरान और हदीस से साबित थे उनकी दिफा मे वसी पैमाने पर लिखा। वहाबियात और देओबन्दी तहरीक के मुकाबला अकेले ही किया अपनी तहरीर और सरगर्मी से बरेलवी तहरीक के बानी बन गए जो के अहले सुन्नत वल जमात का दूसरा नाम बन गया और इसका एक नाम और पड़ा जिसको मसलक ए आला हज़रत कहा जाता है ।
इसके साथ ही इमाम अहमद रजा खान ने 17 सितमबर 1920 ईस्वी को जमात रजा ए मुस्तफा नामी तनजीम की बुनियाद रखी जिसका मकसद अहले सुन्नत वल जमात की तरक्की, अहादीस और मजहबी तालीम है।
इमाम अहमद रजा खान को खिलाफत कहा से मिली और कब मिली ?
इमाम अहमद रजा खान को 1877 ईस्वी मे 22 साल की उम्र मे मारेहरा शरीफ से आले रसूल के ये मुरीद हुए और इनके पीरो मुरशिद ने इनको खिलाफत अता करी और जब इनको खिलाफत मिल गई तो वहा और हजरात भी बैठे थे तो उन्होंने आले रसूल से अर्ज की,
के हम तो इतनी सालों से आपके पास बैठे है अभी तक आपने हमको तो खिलाफत से नवाजा नहीं और वो अहमद रजा बरेलवी से अभी आया और आपने उनको खिलाफत अता कर दी तब उनके इस सवाल पर आले रसूल ने इरशाद फरमाया के ” तुम आकर तैयार हो रहे हो और वो तैयार होकर ही आया था । “
नतीजा
इमाम अहमद रजा खान बरेलवी जिनकी आशिक ए रसूल आला हज़रत के नाम से भी जानते है ये असल मे तारीख ए इस्लाम की अजीम हस्ती है और आला दर्जे के औलमा मे शुमार किए जाते है इन्होंने इस्लाम की सही तालीमात को आम करने के लिए पूरी जिंदगी वक्फ कर दी वो भी उस दौर मे जिस दौर मे कुछ बातिल फिरके हुज़ूर की गुस्ताखी करने पर उजागर थे।
इमाम अहमद रजा खान की तसनीफात, फतवा और तालीमात आज भी उम्मत के लिए मश अले राह है इनकी इल्मी और रूहानी खिदमात के एतिराफ़ मे इन्हे मुजद्दईद का अज़ीम लकब दिया गया जो के तुर्की के औलमा ने मिलकर दिया था।
इमाम अहमद रजा खान की हयाते मुबारिका और इनकी तालीमात हर मुसलमान के लिए एक मिसाल है, जो दीन ए हक को समझते और उस पर इल्म पैरा होने की खवाईश रखते है।
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