उम्र बढ़ने का मतलब – और भी शानदार होना

हमारी सोसायटी मे उम्र बढ़ने को अक्सर कमजोरी, बेबसी या अकेलेपन से जोड़कर देखा जाता है । बुजुर्गों को एक एसे दौर मे पहुचा समझा जाता है जहा की उनकी अब कोई जरूरत नहीं समझी जाती है ।

लेकिन दीन ए इस्लाम मे उम्र का बढ़ना कोई बोझ नहीं, बल्कि इज्जत, तजुर्बा और रहमत की निशानी ही है और जैसे दरख्तों की जड़े गहरी होती जाती है वेसे-वेसे ही एक इंसान की उम्र बढ़ती है और इससे उसकी शख्सियत और निखरती जाती है ।

(01) उम्र का बढ़ना कुरान की नज़रों मे

मेरे अजीजों कुरान ए मजीद मे अल्लाह पाक ने इंसान की तखलीक और उसके तआरुफ़ के हर एक मरहले का जिक्र किया है जिसमे उम्र का बढ़ना भी शामिल है, ” और अल्लाह ही है जिसने तुम्हें कमजोरी की हालत मे पैदा किया, फिर कमजोरी के बाद ताकत दी, फिर ताकत के बाद कमजोरी और बुढ़ापा दे दिया .. ” ( सूरह रूम 54 )

इस आयत से हमे मालूम होता है के बुढ़ापा अल्लाह की बनाई हुई एक नेमत और फितरी अमल है और ये कोई सजा नहीं है बल्कि एक एसा दौर है जिसमे इंसान की रूहानी ताकते जाग उठती है ।

(02) बुजुर्गों को दुआमे मे ताकत

बुजुर्गों की दुआये बेशुमार ताकत रखती है खुद नबी ए करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया, ” तीन लोगों की दुआ रद्द नहीं होती .. उनमे एक है बुजुर्ग मुसलमान की दुआ । ” मेरे प्यारो बुजुर्गों के दिल से निकली हुई दुआ एक एसा नूर है जो नस्लों को संवार सकता है ।

इसलिए जब भी हमारी-आपकी उम्र बढ़े, तो मायूस नहीं होना बल्कि अल्लाह पाक से और करीब होने का वक्त समझ लेना क्योंकि ये भी बहुत बड़ी नेमत है ।

(03) हदीसो मे बुजुर्गों की अहमियत

हमारे प्यारे-प्यारे नबी ए करीम ﷺ ने बुजुर्गों के लिए बहुत अजीम हुकमात दिए । आप नबी ए करीम ने तालीम दी के जो जवान अपने से बड़े की इज्जत नहीं करता, वो उम्मत मे शामिल नहीं ।

” जो हमारे बड़ों की ताजीम नहीं करता और हमारे छोटो पर रहम नहीं करता, वह हम मे से नहीं । ” ( तिरमिजी 1923 ) एक और हदीस मे आया है के, ” बुजुर्ग मुसलमान का एहतराम करना, अल्लाह की ताजीम मे से है । ” ( अबू दाऊद हदीस 4843 )

तो मेरे अजीजों जरा सोचिए ! जब किसी बुजुर्ग की इज्जत करना खुद अल्लाह की ताजीम के बराबर माना गया हो, तो फिर उम्र बढ़ना कितना बड़ा शरफ है ।

(04) मौत का खौफ नहीं बल्कि आखिरत की तैयारी

मेरे अजीजों उम्र का बढ़ना हकीकत मे हमे मौत की याद दिलाता है लेकिन ये खौफ खाने का वक्त नहीं होता है बल्कि ये हकीकत मे आखिरत की तैयारी करने का वक्त होता है । अल्लाह पाक कुरान ए मजीद मे इरशाद फरमाता है कि,

” हर जान को मौत का मजा चखना है .. ” ( सूरह कबूत 57 ) मेरे प्यारो इस्लाम हमे यह नहीं सिखाता के मौत से डरे बल्कि ये सिखाता है के हमे आखिरत की तैयारी करनी चाहिए और बुढ़ापा एक मौका है खुद को अल्लाह के और करीब करने का ।

(05) तजुर्बा और हिकमत – एक नेमत है

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे हजरतए इंसान तजुर्बे, समझदारी और हिकमत मे आगे बढ़ता है। दीन ए इस्लाम एसे लोगों को कौम का रहनुमा मानता है इसके तालुक से हजरतए उमर रजियल्लाहु तआला अनहू फरमाते है,

” जहा बुजुर्ग नहीं, वहा फैसला मत करो । ” तो मेरे प्यारो बुजुर्गों के तजुर्बे से नौजवान बहुत कुछ सीख सकते है एक मुस्लिम समाज तब ही कामयाबी की दहलीज पर पहुचता है जब अपने बुजुर्गों को इज्जत और सलाहियत से नवाजे ।

(06) समाज मे बुजुर्गों का क्या किरदार है ?

बुजुर्ग समाज की रीढ़ की हड्डी होते है वो अपने घर, मोहल्ले और मस्जिद के एसे साये है जिनकी मौजूदगी से बरकत होती है जैसे के

  1. नौजवानों की सही गलत का फर्क सिखाते है ।
  2. वो बच्चों को दुआये देते है ।
  3. मस्जिदों की रौनक बढ़ाते है ।
  4. अपने तजुर्बों से लोगों की राह आसान करते है ।

(07) बढ़ती उम्र – शर्म नहीं, आपकी शान है

मेरे अजीजों आज की दुनिया मे लोग बुढ़ापे से शरमाते है, बाल रंगते है, अपनी उम्र को छुपाते है लेकिन इस्लाम कहता है, ” सफेद बाल कयामत के दिन रौशनी बनेंगे, बशर्ते कि वो अल्लाह के रास्ते मे आअये हो । “

क्या इससे बेहतर कोई इनाम हो सकता है ? सफेद बाल, जो दुनिया मे बुढ़ापे की निशानी है और आखिरत मे रौशनी बनेगी ।

खुलासा ए कलाम

उम्र बढ़ना कमजोरी नहीं है बल्कि अल्लाह की दी गई एक खूबसूरत शान है जैसे समंदर गहराई मे बढ़ता है, जैसे दरख्त वक्त के साथ फलदार होते है, वैसे ही इंसान का बुजुर्ग होना एक नेमत है ।

दिन ए इस्लाम हर उस दिल को सुकून देता है जो बढ़ती उम्र से घबराता है यह हमे सिखाता है कि उम्र के हर मरहले मे कुछ सीखने, देने और जीने का हौसला मौजूद है तो फिर आइए उम्र बढ़ने का मतलब और भी शानदार होना और इसे साबित करे अपने अमल, अपनी सोच और अपने रिश्तो से ।

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