बरेलवी मसलक इस्लाम मे अहले सुन्नत वल जमात का एक दूसरा नाम भी कहा जाता है जो कि 19 वी सदी मे बर्रे सगीर पाक और हिन्द मे उभरा ये तहरीक बुनियादों तौर पर उस सदी के बहुत बड़े आलिम, जिनको अगर कोई ठीक से पढ़ ले तो उनके इल्म का अंदाजा इस बात से लगाएगा कि उस सदी मे जितनी किताबे बाकी के कुल औलमाओ ने लिखी उतनी बल्कि उससे भी ज्यादा इन्होंने लिखी जिनका नाम इमाम अहमद रजा खान(1856-1921 है और बरेलवी कौन होता है जिनको आशिक ए रसूल आला हज़रत के नाम भी जानते है ।
इस मसलक के पैरोकार नबी ए करीम से बहुत ज्यादा गहरी मुहब्बत और अकीदत रखते है और ये सूफी रिवायात को अपनाने पर जोर देते है । आज के इस पोस्ट मे हम इस पर कि बरेलवी कौन होता है और इनका तारीक ए पस मंज़र, अकाईद, मजहबी रिवायात और इस्लामी दुनिया का किरदार क्या है ?
इमाम अहमद रजा खा बरेलवी को आला हज़रत क्यों कहा जाता है ?
जो भाई बरेलवी मसलक को पढ़ते नहीं है उनका ये सवाल अक्सर आता है कि चारों बल्कि इमाम हसन को मिलाएंगे तो पांचों खलिफ़ाओ के नाम मे हज़रत लिखते है लेकिन ये बरेलवी जिनको अपना इमाम मानते है उनके नाम के आगे आला हज़रत लिखते है कहते है ?
इसका जवाब ये कि जब चारों इमामों मे हजरते अबू हनीफ़ा को इमाम ए आजम कहा जाता है ये भी इमाम ए आजम यानि की पूरे आजम के इमाम हुए तो इनके बारे मे क्या कहेंगे आप और ये तो हर एक मसलक के लोग कहते है इसका जवाब वो यू देते है के उस दौर मे चारों इमामों मे हज़रते अबू हनीफ़ा के इल्म के चर्चा हमने ज्यादा सुने बाकियो के मुकाबले और हजरते अबू हनीफ़ा को इमाम ए आजम कहने से मुराद ये है के,
फकत उसी दौर के जितने भी इमाम थे उनसे से ये सबसे आजम थे सबसे ज्यादा इल्म रखते थे इसलिए उनको इमाम ए आजम कहा जाता है लेकिन ये फकत उसी वक्त लोगों के लिए है।
अब इसी तरह बरेलवी इसका जवाब यू ही देते है कि चूंकि उस दौर मे सबसे ज्यादा इल्म मे और हर एक चीज मे सबसे ज्यादा इल्म इमाम अहमद रजा के पास था और हज़रत तो बहुत थे लेकिन उन हजरात मे से ये ही फकत आला हज़रत थे यानि उस दौर के तमाम औलमाओ से सबसे ज्यादा इल्म, सलाहियात रखते थे इसलिए इनका नाम आला हज़रत भई पुकारा जाता है ।
बरेलवी तहरीक की तारीख क्या है ?
बरेलवी तहरीक की तारीख का आगाज 19वी सदी मे हुआ जब बरतानवी राज के दौरान बर्रे सगीर मे इस्लामी मु-आशरे मे मुखतलिफ़ इसलाही तहरीके और नये नज़रियात सामने आ रहे थे और इसी दौर मे वहाबी और देओबन्दी तहरीके भी वजूद मे आ रही थी जो कि इस्लाम मे एक सख्त गैर नुक्ता ए नजर को फरोग दे रही थे ।
हजरते इमाम अहमद रजा खान बरेलवी ने रिवायती इस्लामी तालीमात और सूफी नजरियात को महफूज रखने पर जोर दिया और वहाबी और देओबन्दी नजरियात के मुखालिफत की । हजरते इमाम अहमद रजा खान बरेलवी की तालीमात मे नबी ए करीम की मुहब्बत और ताज़ीम को बुनियादी हेसियत बे हद हाशिल है ।
बरेलवियों के बुनियादी अकाईद क्या है ?
आपको बता दे कि बरेलवियों के अकाईद बुनियादी तौर पर सूफी नजरियात और इस्लामी रिवायात पर मबनी है इनके 6 अहम अकाईद बताए जा रहे है और ये वही अकाईद है जो कुरान और हदीस से साबित है बस कोई आशिक ए रसूल के चश्मे को पहनकर पढे तो पता चलेगा कि ये अगर आपको सहाबियों के अंदर मुहब्बत हुज़ूर के लिए कैसी थी देखनी है तो इल्म वाले बरेलवी को देख लो ।
(01) बरेलवियों की हुज़ूर नबी ए रहमत से बे पनाह मुहब्बत
बरेलवी मसलक जिसको आज के दौर मे मसलक ए आला हज़रत भी कहा जाता है इनके पेरोकार ये अकीदा रखते है के नबी ए करीम, हुज़ूर नबी ए रहमत अल्लाह की अता से नूर है और तमाम काएनात के लिए रहमत है इनका ये भी मानना है के हुज़ूर अल्लाह पाक के हुक्म से और उसकी अता से हाजिर और नजीर भी है यानि की अल्लाह पाक की अता से हर जगह मोजूद है और हर चीज को देखने वाले है ।
(02) बरेलवियों का औलिया किराम और उनकी करामात पर यकीन
बरेलवियों का ये भी अकीदा है के अल्लाह के वली (सूफी बुजुर्ग) बरगुजीदा हस्तिया होती है और इनकी करामत हकीकत पर मबनी है इनके मजारों पर हाजिरी देना और इनसे बरकत और फ़ैज़ हासिल करना जाएज समझा जाता है ।
(03) बरेलवियों के नजदीक मीलादुन नबी का अहतिराम करना जाएज है
बरेलवी मसलक के पेरोकार हुज़ूर नबी ए रहमत की विलादत बा सादत को ईद मीलादुन नबी के तौर पर अकीदत और अहतिराम से मनाते है इस मोके पर जलसे, जुलूस नाट खानी और हुज़ूर की सीरत पर खिताबात होते है ।
याद रहे जो चीज हराम है उसका इसके जुलूसों से दूर-दूर तक कोई तालुक नहीं अगर करने वाला जाहिल है तो उसको हम और आप बरेलवी नहीं कह सकते जबकि बरेलवी तो आशिक ए रसूल होता है तो इसके लिए जुलूस मे गाने बाजे, डांस या खुरापात करना कैसे जाइज़ हो सकता है और क्या फिर इसने बरेलवी मसलक की तालीम हासिल भी की है बहुत सी बाते आती है,
जिनको देख कर बाकी के मसलक के लोग कहते है के ये देखो ये है बरेलवी जब की वो जाहिल को दिखा रहे होते है अगर आपको बरेलवी देखना है तो वो आपको इमाम अहमद रजा की किताबों मे लिखी तालीमात मे मिलेगा न की चलते रोड पर नाचता जाहिल ।
(04) बरेलवियों के नजदीक वसीला से मांगना जाएज है
बरेलवी मसलक मे अकाईद पाया जाता है के अल्लाह पाक ने अपने नेक बंदों को अपनी अता से नवाजा है और बरेलवियों की किताबों मे आया है की अल्लाह की ही अता से औलिया अल्लाह नवाजते है जबकि लोग तोहमद लगाते है के ये अल्लाह के शरीक औलिया को ठहराते है जिसका जवाब आपने पढ़ लिया है इसके साथ ही ये अकाईद बरेलवियों का है के बुजुर्गों के वसीले से दुआ मांगना जाएज है जिसकी तफसील और कुरान का हवाला आपको मिल जाएगा अगर आप बरेलवी आलिम के पास जाओगे तो ।
(05) बरेलवियों का मजारों और दरगाहों की जियारत करना
बरेलवी अकीदे के पेरोकार मुखतलिफ़ सूफी बुजुर्गों के मजारात पर हाजिरी देते है वहा फातिहा खानी करते है और दुआए भी मांगते है इसकी तफसील ये है के अल्लाह के नेक बंदों के करीब रहने से उनका कुर्ब हाशिल होता है क्योंकी वली तो अपनी कब्रों मे जिंदा है और अल्लाह पाक की अता से नवाजते भी है जैसा की किताबों से साबित है जिसको करामत कहा जाता है ।
इसकी एक वजाहत और करदु के लोग कहते है के मज़ारों पर जाना और उनसे दुआ करते है बरेलवी जो की खुला शर्क है लेकिन ये प्यारे और आखिरी नबी हुज़ूर नबी ए रहमत की उस हदीस को भूल जाते है की जहा नबी फरमाते है की, ” बनी इसराईल मे 72 फिरके थे लेकिन मेरी उम्मत मे 73 होंगे और इन 73 मे से फकत 1 ही जन्नती होगा और ये भी कहा एक जगह की इनसे से 1 भी शर्क तक पहुचेगा । “
ये शर्क नहीं होता है शर्क इसी कंडिशन्स मे होगा जबकि मांगने वाले के दिल मे ये है के देने वाले बस यही है और इन्ही को खुदा मान बैठे लेकिन ये तो आपको जब पता चलेगा जब आप उससे पूछोगे या आपने उससे बात करी होगी बिना तहकीक किये किसी पर इंजाम लगाना बहुत बड़ा गुना है इसके साथ ही एक बात अहम बात और के,
ये एक आयत का मायने बताते है के ” मैदान ए महशर मे उन लोगों को बुलाना जिनसे तुम मांगते थे ” इस आयत को लेकर कहते है के देखो क्या ये शर्क नहीं है अब जबकि ये आयत उन लोगों के लिए है जो बुतो से मांगते थे अब जो आयात बुतो के लिए थे वो आयत ये बुजुर्गों पर जशपा कर रहे है अब इसका जवाब भी ये लोग कब्र मे हश्र मे देना होगा ।
(06) इमाम अहमद रजा खान बरेलवी की तालीमात
आपको अगर पता करना है की बरेलवी कौन होता है तो फिर आपको इमाम अहमद रजा खान बरेलवी के बारे मे पढ़ना होगा और जब आप इनके बारे मे पढ़ेंगे तब आपको अंदाजा होगा की ये किस हस्ती का नाम है और आप कह उठेंगे की वादी रजा की है हिमाला रजा का है और जिस सिम्त देखिए अलाका रजा का है ।
जी हा दोस्तों इन तलीमात आपको किताबों मे इस कद्र हुज़ूर नबी ए रहमत से मुहब्बत के शेर और नात और कलाम मिलेंगे जिनको पढ़ कर आप खुद कह उठोगे की क्या ही नवाजा है अल्लाह पाक ने इस इमाम को की और हर एक चीज इस्लाम के अहकाम की रोशनी मे अहम तरीन और इनकी मशहूर तसानीयत मे फतवा ए रजविया शामिल है ।
बरेलवी मसलक का आलमी असर क्या है ?
आपको बता दे के बरेलवी मसलक सिर्फ बर्रे सगीर तक ही महदूद नहीं बल्कि ये पाकिस्तान, बांगलादेश, अफ्रीका, तुर्की, अरब और बरतानिया मे और हर एक देश मे वसी पैमाने पर मोजूद है
(01) भारत मे बरेलवी तालीमात
भारत मे चूंकि यहा तो इस्लाम सूफीजम के तहत ही फेला है इसलिए भी यहा बहुत बड़े पैमाने पर बरेलवी मसलक के पेरोकार मोजूद है कई खानकाहे कई मजारात यहा बने हुए है जो अपने अपने वतन को छोड़ कर दीन की तबलीग करने यहा आए थे और उन्होंने अपना काम बहुत अच्छे तरीके से किया ।
(02) पाकिस्तान मे बरेलवी तालीमात
सरहद के उस पार भी अक्सर तादात भी आज भी बरेलवी है और वो भी सूफिजम को ही फरोग देते है इसके साथ ही वहा बरेलवियों की एक बड़ी जमात मोजूद है जिसे तहरीक लब्बएक पाकिस्तान tlp भी कहा जाता है । इसके अलावा अब Dawateislami भी बहुत बड़े पैमाने पर इसी मसलक को लेकर चल रही है ।
(03) बरतानिया मे भी बरेलवी तालीमात
बरतानिया मे भी कई जगहों पर बरेलवी मसाजिद और तनजीमे मोजूद है जो रिवायाती इस्लामी तालीमात को फरोग दे रही है और वहा के बहुत आलिम ए दीन इस मिशन से जुड़ कर तबलीग कर रहे है ।
बरेलवियों के अहम रिवायात जिनसे इनकी पहचान होती है
(01) गोस ए आजम की 11 वी शरीफ
बरेलवी कौन होता है इसका जवाब आपको 11 वी शरीफ से भी मालूम चल सकता है ये हर इस्लामी महीने की 11वी रात को हज़रत ए गोस ए आजम शैख अब्दुल कादिर जीलानी की याद मे महाफ़िल ए मीलाद मुन-किद करते है महाफ़िल मे जिक्र और अजकार, दुआ और लंगर का भी एहतिराम किया जाता है ।
(02) उर्स ( यानि सूफी बुजुर्गों की बरसी पर इजतिमा )
बरेलवी मसलक के मुसलमान सूफी बुजुर्गों के उर्स का इनकाद करते है जहा इस्लामी तकारीर, नात खानी और फातिहा खानी की जाती है और जिस बुजुर्ग का उर्स है उनकी तालीमात बाताई जाती है ।
(03) दुरूद और सलाम की महफ़िल
बरेलवी मसलक के मुसलमान घरों मे मसाजिद मे दुरूद शरीफ और सलाम की महफ़िल करते है और इसको बहुत अहमियत देते है क्योंकी जाहीर सी बात है जिसका जिक्र कसरत से होता है उसका बसेरा भी दिल मे होता है । इसके साथ ही एक सलाम है जिसको कहते है ” मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम “
ये सलाम इमाम अहमद रजा खान ने लिखा था अल्लाह पाक की बारगाह मे ऐसा मकबूल हुआ की हर जगह ज्यादा तर यही सलाम हर जुमे की नमाज के बाद पढ़ा जाता है ।
नतीजा
ये सवाल के बरेलवी कौन होता है इसके हल मे यही है के बरेलवी मकतबे फिक्र इस्लाम का एक अहम मसलक है जो नबी ए करीम की मुहब्बत, सूफी रिवायत, औलिया किराम की इज्जत और रिवाएती इस्लामी तालीमात पर यकीन रखता है और कुरान और हदीस पर ही मबनी है इस तहरीक की बुनियाद बर्रे सगीर मे इमाम अहमद रजा ने अहले सुन्नत को छान कर निकाला है जिसमे हक एक तरफ और नई तहरीक और नये नजरिया एक तरफ हुए ।
इसके साथ ही बरेलवी तहरीक ने इस्लामी सकाफत और हकीकी रिवायात के तहफुज मे नुमाया किरदार अदा किया है इस के पेरोकार सूफी तालीमात पर अमल पैरा होकर इस्लाम के पैगाम को आम करने मे कोशा रहते है ।
आप इस पोस्ट के तालुक से अपनी राय नीचे दे सकते है और इंशा अल्लाह मे उनका जवाब दूंगा ..