दूसरा निकाह करना कैसा है इस्लाम मे । Dusra Nikah karna kaisa hai islam me

तआरुफ़ – दूसरी शादी करना कैसा है इस्लाम मे

इस्लाम एक मुकम्मल दीन है जो की जिंदगी के हर एक पहलू पर रहनुमाई फरहम करता है । निकाह भी इस्लाम का एक अहम हिस्सा है लेकिन जब बात दूसरे निकाह की होती है तो कई सारे सवालात सामने आते है – क्या दूसरा निकाह करना जाइज है ? क्या इसकी कोई शर्ते है ? और दूसरा निकाह करना कैसा है इस्लाम मे इस सवाल का जवाब लोग मुखतलिफ़ तरीकों से देते है ।

आइए आज के इस पोस्ट मे हम कुरान और हदीस की रोशनी मे इस मसले को इस सवाल के जवाब को तफसील से समझते है और ये आज के दौर मे बहुत ज्यादा पूछा जाने वाला सवाल है।

(01) इस्लाम मे निकाह की अहमियत

दीन ए इस्लाम मे निकाह सिर्फ एक जिस्मानी जरूरत पूरी करने का जरिया नहीं बल्कि एक सुन्नत भी है और कई बार कई लोगों पर ये फर्ज भी हो जाता है। अल्लाह पाक कुरान ए मजीद की सूरह निशा मे इरशाद फरमाता है,

” और उनसे निकाह करो जो तुम्हारे लिए हालल है । ” यानि के इस्लाम मे निकाह को एक पाक रिश्ते के तोर पर तस्लीम किया गया है जिसमे मुहब्बत, जिम्मेदारी और वफादारी भी शामिल होती है ।

(02) दूसरा निकाह करने की इजाजत कुरान ए मजीद मे

अल्लाह पाक की किताब जो हमारे प्यारे नबी, हुज़ूर नबी ए रहमत पर नाज़िल हुई जिसको कुरान ए मजीद कहा जाता है उसमे अल्लाह पाक दूसरी, तीसरी और चौथी शादी यानि निकाह की इजाजत फ़राहम की है और इरशाद फरमाता है,

” और अगर तुम्हें डर हो के तुम यतीमों के मामले मे इंसाफ नहीं कर सकोगे तो जो औरते तुम्हें पसंद आअये उनसे निकाह करो, 2 या 3 या 4 लेकिन अगर तुम्हें अंदेशा हो के तुम इंसाफ नहीं कर सकोगे तो फिर एक ही काफी है । ( सूरह निशा, आयत 3)

इस आयत से साफ साबित है के दूसरा निकाह करना कैसा है इस्लाम मे इसका जवाब ये है के इस्लाम मे दूसरा निकाह बिल्कुल जाइज़ है लेकिन शर्तों के साथ और सबसे पहली शर्त यही है के इन्साफ कर सको दोनों के दरमियान तो ही जाइज़ है एसा न हो के एक साथ आप 2 हफ्ते रहते हो और एक के साथ 1 ही हफ्ता,

एक को अच्छा खाना पीना दे रहे हो और एक को नहीं जब दोनों को आप बराबर तरीके से हर एक सहूलत दे सकते हो तब ही जाइज़ है और पहली बीवी की इजाजत की हाजत नहीं बस आपस मे इखतेलाफ़ न होना चाहिए ।

(03) शर्ते और जिम्मेदारियाँ – दूसरा निकाह करने के लिए

दीन ए इस्लाम दूसरा निकाह करने की इजाजत जरूर देता है मगर उसके साथ कुछ शर्ते भी लगा देता है जिनमे से हम कुछ नीचे लिख रहे है जैसे के,

  • इंसाफ की पाबंदी: पहली बीवी के साथ जो सुलूक हो रहा है वही दूसरी बीवी के साथ भी हो जितनी मुहब्बत पहली बीवी से करे उतनी ही दूसरी बीवी से भी करे ।
  • जरूरत का होना: अगर किसी जरूरत की वजह से दूसरी शादी की जा रही हो जैसे पहली बीवी बे औलाद है बीमार है या किसी और वजह से रिश्ते मे मुश्किल हो तो ये शरई तोर पर बिल्कुल ठीक है।
  • छुपाकर न करना: प्यारे दीन ए इस्लाम मे ईमानदारी और सच्चाई की बहुत अहमियत है दूसरा निकाह छुपाकर करना अकसद्र घर के लिए मुसीबत बन सकता है । इसलिए अगर आपको दूसरा निकाह करना है तो सबके सामने ही करे ताकि बाद मे कोई फसाद न हो ।

(04) दूसरा निकाह का मकसद

दूसरा निकाह करने के पीछे कई मकसद भी हो सकते है जिनमे से हम कुछ नीचे लिख रहे है:

  1. किसी बेवा या तलाक याफ़्ता औरत को आसरा फ़राहम करना
  2. औलाद की खवाईश जबकि पहली बीवी से औलाद न हो पाई हो
  3. नफसाई या जिस्मी जरूरत पूरी करना हलाल तरीके से
  4. फ़ितना और हराम से बचने के लिए

इस्लाम मे दूसरी शादी का मकसद अगर इखलास और इंसाफ पर मबनी हो तो वो सिर्फ जाइज़ है बल्कि अजर का सवाब भी बन मिलता है किसी का शोहर इंतेकाल का गया हो उसको सहारा देने के लिए उससे निकाह करना भी बहुत बड़ा सवाब का काम है इससे उसके बच्चों की परवरिश भी अच्छे से हो जाएगी

लेकिन ये तब ही करे जब उसके लिए खाने पीने से लेकर रहने और लिबास और उसके हुकूक को पूरा कर सके ।

(05) क्या पहली बीवी से इजाजत लेकर ही दूसरा निकाह हो सकता है ?

शरीयत मे दूसरा निकाह करने के लिए पहली बीवी से इजाजत तलब करने की कोई जरूरत नहीं है लेकिन अखलाकी तौर पर उसकी अहमियत है अगर पहली बीवी की रजामंदी हो तो घर के माहौल मे पुर सुकून के साथ मुहब्बतों मे भी बहुत इजाफा हो जाएगा ।

लेकिन अगर पहली बीवी नफरत का इजहार करे तो मर्द को सच समझ कर फैसला लेना चाहिए इसका मतलब ये है के वो गौर करे के क्या ताकि ज़ुल्म या ना इंसाफी न हो इसलिए जब पूछा जाए के दूसरा निकाह करना कैसा है इस्लाम मे तो जवाब मे ये भी कहना जरूरी है के इंसाफ और अखलाकीयत का ख्याल रखना लाज़मी है ।

लेकिन अगर पहली बीवी मना करे तो आप ये देखे के शरीयत का तकाजा क्या है क्या आपको औलाद की खवाईश है जो की पहली बीवी से न हो पा रही या फिर आप बाहर कही है और बीवी बहुत दूर है और रहने मे बहुत ज्यादा आजमाइश हो चाहे वो खाने पीने की हो या शहवत यानि नफ़सानी खवाईशात का गलबा तो,

अब इस सूरत मे पहली बीवी कुछ भी कहे लेकिन आप पर जरूरी है के आप दूसरा निकाह करे लेकिन बस दोनों बीवीओ के हुकुक मे कमी न आये ।

(06) आम गल्तिया और समझ का ग़लत पहलू

देखा जाता है के अक्सर दूसरी शादी का हवाला देकर लोग अपनी गलतियों को छुपाने की कोशिश करते है जैसे के:

  • पहली बीवी के साथ ना-इंसाफी
  • सिर्फ जिस्मी खवाईशात की बुनियाद पर फैसला लेना
  • घर तोड़ कर दूसरा रिश्ता बनाना
  • ईमान और शरीयत की रोशनी के बगैर ही फैसला कर लेना

एसे लोगों के लिए दूसरा निकाह न के सिर्फ मुश्किलात ला सकता है बल्कि जिंदगी मे भी फ़ितना पैदा कर सकता है इसलिए बेशक दूसरा निकाह इस्लाम मे जाइज़ है लेकिन उसका भी एक निजाम है कुछ शर्ते है अगर इनको पूरा कर पातो हो तब ही दूसरा निकाह जाइज़ होगा आपके लिए।

(07) आज के दौर मे दूसरा निकाह – एक बहुत बड़ा चलेंज

आज कल के समाज मे या कहे के दौर मे दूसरा निकाह को अक्सर ए गलत नजर से ही देखा जाता है इसकी वजह जैसे के:

  1. मीडिया के गलत खबरे और गलत तासुर
  2. अजनबी और गैर-इस्लामी सोच
  3. औरतों का जज्बाती तौर पर इसे गलत समझ लेना

लेकिन हर एक मुसलमान को चाहिए के हम अपने दीन की तालीमात को समझकर ही फैसला करे इस्लाम ने जब दूसरा निकाह जाइज़ करार दिया है तो हमे भी इसे इज्जत और समझदारी के साथ लेना चाहिए और मानना चाहिए इसमे अपनी अक्ल नहीं लगानी चाहिय के एसा नहीं एसा होता जैसा बहतर था वो कुरान ए मजीद मे और हुज़ूर ने हमे बता दिया है ।

अब बहतरी इसी मे है के शरीयत पर अमल शुदा होया जाए और जिंदगी को आसान बनाया जाए ।

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