ईमान किसे कहते है । Iman kise kahte hai

ईमान की अहमियत और तशरीह – ईमान किसे कहते है

इस्लाम एक मुकम्मल जिंदगी का दस्तूर है जिसका बुनियादी पैमाना ईमान है । लेकिन अब सवाल ये आता है के आखिर ईमान किसे कहते है ? क्या ये फकत जुबान से कह देने का ही नाम है या कुछ और भी इसमे शामिल है ?

आइए आज इसे तफ़सील से समझते है के ईमान का असल मतलब क्या है, इसकी किसमे कितनी है और कौन-कौन सी है और एक मुसलमान की जिंदगी मे इसका क्या किरदार है इन तमाम सवालों के जवाब आज तफसील से जानेंगे और जानेंगे के कितना अहमियत रखता है ईमान का पता होना एक मुसलमान के लिए।

ईमान किसे कहते है ?

ईमान का लफ़ज़ी मायना है यकीन, तसदीक करना या किसी बात को दिल से मान लेना । दीन ए इस्लाम मे ईमान किसे कहते है तो इसका मतलब ये है के,

” अल्लाह पाक और उसके रसूलो, उसकी किताबों, उसके फिरिश्तों, कयामत के दिन और तकदीर पर दिल से यकीन रखना, जुबान से इकरार करना और अमल से उसका सबूत देना । ” ये है ईमान इस्लाम के पॉइंट ऑफ व्यू से । इस पैमाने को कुरान ए मजीद और हदीस शरीफ दोनों मे वाजेह तौर पर बयान किया गया है ।

ईमान की बुनियादी शराइत क्या है ?

जब हम कहते है के ईमान किसे कहते है ? तो इसका सही मायना समझने के लिए इन 3 बुनियादी शराइत को समझना भी जरूरी है । जिनको नीचे लिखा जा रहा है:

  1. तसदीक बिल क़ल्ब ( दिल से यकीन ) : दिल से यकीन करना के अल्लाह पाक ही सब कुछ है और वही पालने वाला है ।
  2. इकरार बिल लिसान ( जुबान से इकरार ) : जुबान से कहना के ” ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसुलुलाह । ” यानि के अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं और हज़रत मुहम्मद मुस्तफा, हबीब ए खुद अल्लाह पाक के रसूल है ।
  3. अमल बिन अरकान ( आमाल से सबूत ) : ईमान सिर्फ कहने या समझने या मानने तक महदूद नहीं बल्कि इंसान के आमाल भी उसका सबूत देते है ।

कुरान ए मजीद मे ईमान का तरीका क्या आया है ?

कुरान ए मजीद मे कई जगहों पर ईमान किसे कहते है इसका जवाब आया है जैसे के अल्लाह पाक कुरान ए मजीद मे सूरह निशा मे आयत नुमबर 136 मे इरशाद फरमाता है जिसका माएना ये है के,

” ऐ लोगों जो ईमान लाए हो, अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ । ” इस आयत मे अल्लाह पाक ने पहले से ईमान लाने वालों से दुबारा ईमान लाने को कहा जिसका मतलब है के ईमान एक मुसलसल अमल है, सिर्फ एक बार कह देने से काफी नहीं होता है ।

हदीस शरीफ मे ईमान की तशरीह

हुज़ूर पुर नूर, हुज़ूर नबी ए रहमत, तमाम नबियों के सरदार ने एक मशहूर हदीस शरीफ मे ईमान को कुछ इस तरह बयान किया है, ” ईमान 70 से ज्यादा हिस्सों पर मुशतमिल है उन्मे से बहतरीन ला इलाहा कहना है और सबसे नीचा हिस्सा रास्ते से तकलीफ दे चीज हटाना है । ” ( मुस्लिम शरीफ )

यानि ईमान का तालुक फकत सिर्फ अकीदे से ही नहीं बल्कि अखलाक, सिलाह रहमी और इंसानियत से भी है, मजबूत ईमान वाले लोग फकत अल्लाह पाक से ही डरते है और दुनिया वालों के लिए आसानिया पैदा करते है और एक दूसरे की इज्जत करते है आपस मे भाई चारा कायम रखते है और फसादियों से दूर रहते है । इसी को ईमान कहा जाता है ।

ईमान की कितने किसमे है और कौन-कौन सी है ?

आपको बता दे के ईमान को मुखतलीफ़ किस्मों मे तकसीम किया गया है जो की नीचे लिखी हुई है ध्यान से जानिए और समझिए:

  1. ईमान ए मुजमल यानि के आम तौर पर ईमान लाना ।
  2. ईमान ए मुफ़स्सल यानि के तफसील से ईमान लाना ।
  3. ईमान ए कामिल जो ईमान अमल और अखलाक दोनों मे कामिल हो ।
  4. ईमान ए नाकीस जो ईमान कमजोर हो, जिसमे कुछ आमाल मे कमी हो ।

ये कुछ ईमान की किसमे थी जिनका जानना भी आपके लिए जरूरी था ।

ईमान और आमाल का तालुक कैसे है ?

हमारे कई भाई और कई सारी बहिने पूछती है के अगर किसी का ईमान है तो क्या उसके आमाल जरूरी है ? इसका जवाब है: हा बेशक ये जरूर है के ईमान का आमाल से गहरा तालुक है आमाल के बगैर ईमान बहुत कमजोर हो जाता है और इसके तालुक से खलीफा ए सानी हज़रत ए उमर रदी अल्लाहु ताला अनहू ने फरमाया है के,

” ईमान बिना अमल के कुछ नहीं और अमल बिना ईमान के कुछ नहीं । ” यानि के ये दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे है लिहाजा ईमान के साथ आपके आमाल भी होने चाहिए जिससे अल्लाह पाक आपसे राजी हो हुज़ूर पुर नूर, हबीब ए खुदा आपसे खुश हो ।

ईमान का फाइदा क्या है ?

जो शख्स हकीकी ईमान वाला होता है उसके लिए दुनिया और आखिरत दोनों मे कमियाबी है और सुकून है चैन है । अब इसके बहुत सारे फायेदे है जैसे के:

  • दिल का सुकून: ईमान से दिल को सुकून मिलता है ।
  • बुराइयों से बचाव: ईमान इंसान को गुनाह से बचाता है ।
  • आखिरत मे निजात: सिर्फ ईमान वाले ही जन्नत के हकदार होंगे ।
  • जिंदगी का मकसद: ईमान से इंसान को जिंदगी का असल मकसद मालूम होता है ।

ईमान कमजोर कैसे और क्यों हो जाता है ?

ईमान असल मे एक जज्बा है जो की भड़ता भी है और कमजोर भी पड़ता है लेकिन कमजोर ईमान उन्ही लोगों का होता है जो की आमाल से दूर ही जाते है यहा कुछ वजाहते दी गई है जिनसे ईमान कमजोर होने की तरफ आता है ?

  • गुनाहों का आम अमल
  • नमाज और इबादत मे गफलत
  • झूट, धोका और हराम माल
  • बुरे लोगों की सोहबत

ये कुछ एसे अमल और एसी बाते है अगर इनमे से कोई एक भी आपके साथ है तो फिर यकीनन कही न कही आपका ईमान कमजोर हो चुका है या कमजोर होने वाला है लिहाजा इन तमाम चीजों को आप खुद से दूर रखे ताकि आपका ईमान मजबूत बना रहे ।

ईमान को मजबूत कैसे करे ?

मेरे प्यारो अगर आप चाहते है के आपका ईमान मजबूत हो तो इन बातों का ख्याल रखे और कसरत के साथ आमाल को अपनी जिंदगी के रोजाना के निजाम मे एड करे जैसे के:

  1. कुरान ए मजीद की तिलावत रोजाना करे
  2. नमाज की पाबंदी कसरत के साथ करे
  3. अच्छे लोगों की सोहबत इख्तियार करे
  4. गुनाहों से बचे
  5. नेकी के काम करे – सदका, लोगों की मदद करे, दुआ करे
  6. अपने नेक कामों को लोगों के सामने कभी जाहीर न करे

ईमान और कुफ़र मे फर्क क्या है ?

ईमान किसे कहते है ? ये समझने के लिए ये समझना तभी मुकम्मल होता है जब हम कुफ़र का मतलब भी समझे के कुफ़र आखिर क्या है और इसका क्या मतलब है ? इसका मतलब है के, ” हक को जानना मगर उसका इनकार करना या उससे मुँह मोड लेना । “

जो शख्स ईमान के बुनियादी अकाइद का इनकार करता है वो काफिर कहलाता है इसलिए हर एक मुसलमान के लिए जरूरी है के वो अपने ईमान को समझे और उस पर मजबूती से कायम रहे ।

ये याद रखे बेशक इस्लाम को एक खुदा को न मानने वाले काफिर है लेकिन अल्लाह पाक कब किसको हिदायत दे दे और कब किस मुसलमान को गुमरा कर दे वो अल्लाह है वो इन तमाम चीजों पर कादिर है लिहाजा किसी को ईमान की दौलत से नवाजा गया है तो वो अपने आमाल पर गौर करे न की किसी को बुरा भला कहने पर ।

बच्चों को ईमान की तालीम कैसे दे ?

आज के दौर मे बचपन से ही ईमान की तालीम देना जरूरी है बच्चों को छोटी उम्र से ही अल्लाह और रसूल और दीन के बारे मे बताया जाए ताकि उनका ईमान शुरू से ही मजबूत बन रहे ।

अगर बच्चों के ईमान को मजबूत और इनको शुरू से ही ईमानदार बनाना चाहते हो तो फिर सबसे पहले आपको खुद ब अमल बनना ही होगा जिसका ज्यादा आपका खुदका अमल रहेगा और बच्चों को आप अमल करते दिखेंगे उतना ही अच्छा और मजबूत बच्चों का ईमान होता जाएगा लिहाजा सबसे पहली तालीम बच्चे के लिए उसका घर ही होता है

और उसका पहला टीचर उसकी मा और बाप ही होते है जो भी बच्चे के मा बाप करते है वो तमाम चीजे बच्चे के अदंर आती रहती है यानि के बच्चा देख कर सीखता है और करता वही है जो बच्चे के मा बाप करते है फिर अमल जो भी हो ।

ईमान और तकवे का तालुक क्या है ?

ईमान और तकवा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है जहा ईमान होता है वहा तकवा भी होता है तकवे का मतलब है, ” अल्लाह पाक से डर कर बुराई से बचना और हर नेक काम करना । ” इसके तालुक से अल्लाह पाक कुरान ए मजीद मे इरशाद फरमाता है के, ” अल्लाह पाक के नजदीक सबसे इज्जत वाला वो है जो सबसे ज्यादा तकवा वाला है । ” अब हम मे जिसको भी अल्लाह पाक के नजदीक होना प्यारा होना है उसको चाहिए के ज्यादा से ज्यादा तकवा इख्तियार करे ।

ईमान किसे कहते है – सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले सवालात ?

1) ईमान क्या होता है ?

ईमान का मतलब होता है अल्लाह, रसूल, कुरान, कयामत और तकदीर पर यकीन रखना ।

2) ईमान और इस्लाम मे क्या फर्क है ?

इस्लाम जिंदगी का तरीका है जबके ईमान उसका अकीदा है ।

3) ईमान मजबूत कैसे होता है ?

कुरान की तिलावत, नमाज, नेक काम और गुनाहों से बचने से ।

4) क्या सिर्फ जुबान से कहना काफी है ?

नहीं, दिल का यकीन और आमाल भी जरूरी है ।

5) क्या ईमान कम या ज्यादा होता है ?

हा, ईमान बड़ता भी है और कम भी होता है ये असल मे आमाल और नियत पर मबनी है ।

खुलासा ए कलाम

मेरे प्यारो, ईमान किसे कहते है इसका मतलब सिर्फ जुबान से कहना नहीं बल्कि दिल से मान कर अमल करना है । एक मुसलमान के लिए ईमान उसकी रूह की तरह है जिस तरह रूह के बगैर जिस्म बेजान होता है उसी तरह ईमान के बगैर जिंदगी बे मकसद होती है ।

अपने ईमान की हिफाजत कीजिए इसे मजबूत बनाइये और हर रोज अल्लाह पाक के साथ अपना तालुक गहरा कीजिए । और ईमान को मजबूत कैसे करे तो इसका एक सीधा सा जवाब ये है जिस तरह आपकी बॉडी को खाने से ताकत मिलती है ठीक इसी तरह आपके ईमान को जिक्र ए खुदा से ताकत मिलती है और जितना ज्यादा आप खुदा के जिक्र करोगे जितना

ज्यादा आप हुज़ूर पर दुरूद शरीफ पढ़ोगे आपका ईमान उतना हु मजबूत होता चलेगा । तो ईमान की मजबूती के लिए अमल भी एक सबसे बड़ी शर्त है ।

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