कजा ए उमरी नमाज का तरीका
नमाज़ इस्लाम के फरजो मे से 2 फर्ज है और फर्ज का मतलब असल ये होता है के ये अल्लाह पाक का आपके ऊपर एक तरीके का कर्ज है आपको अदा करना ही करना है अगर नहीं अदा कर पाए और अल्लाह न करे के आपका इंतेकाल हो गया तो अब आपकी पकड़ बड़ी सख्त होगी लेकिन अभी आप हयात है तो आप पर ये लाजिम होता है के
आपने जितनी भी नमाजे छोड़ी है जब से आप बालिग हुए हो तो तब हिसाब लगा ले और उनकी कजा पढ़ना शुरू करे और आज कल कई लोगों के लिए ये एक अहम सवाल है के जो अपनी छूटी हुई नमाजों का कफ़फारा देना चाहते है क्योंकि अब सब सबकी जिंदगी बहुत दौड़-धूप मे की बार एसा होता है के,
हम नमाज छोड़ देते है या रेगुलर नहीं पढ़ते मगर इस्लाम मे इसकी भरपाई का एक तरीका है जिसे कजा ए उमरी नमाज कहते है। तो आज के इस पोस्ट मे हम कजा ए उमरी नमाज का तरीका का तरीका उसके जरूरी अहकाम, नियत, फ़ज़ीलत और कॉमन सवालात के जवाबात तफसील से समझेंगे ।
कजा ए उमरी नमाज क्या है ?
कजा का मतलब है छूटी हुई इबादत की अदाईगी और उमरी का मतलब है पूरी जिंदगी । जब कोई मुसलमान अपनी पूरी जिंदगी की छूटी हुई फर्ज़ नमाजों को अदा करने का इरादा करता है तो उसे कजा ए उमरी नमाज कहते है।
इस्लाम मे नमाज छोड़ना बहुत बड़ा गुनाह ए कबीरा है लेकिन अगर कोई शख्स दिल से तौबा करे और छूटी हुई नमाजों को अदा करे तो अल्लाह पाक उसे माफ देता है और उसकी नियत के हिसाब से उसको सवाब भी देता है।
कजा ए उमरी नमाज का तरीका – एसे पढ़ी अपनी कजा नमाजे
कजा हर रोज की 20 रकाते होती है 2 फ़जर के फर्ज़, 4 जोहर के फर्ज, 4 असर के फर्ज़, 3 मगरिब के फर्ज़, 4 इशा के फर्ज़ और 3 वित्र । नियत इस तरह कीजिए के ” सबसे पहली फर्ज़ जो मुझसे कजा हुई उसको अदा करता हूँ या करती हूँ। ” हर नमाज मे इसी तरह नियत कीजिए जिस पर ब कसरत कजा नमाजे है वो आसानी के लिए अगर यू भी अदा करे तो जाइज है।
के हर रुकुअ और हर सजदे मे तीन-तीन बार तसबीह की जगह एक-एक ही बार कहे मगर यह हमेशा और हर तरह की नमाज मे याद रखना चाहिए के जब रुकुअ मे पूरे पहुँच जाए तो उस वक्त सबहान का सीन शुरूअ करे और जब अजीम का मीम खत्म कर चुके उस वक्त रुकुअ से सर उठाए ।
इसी तरह सजदे मे भी करे एक तखफीफ तो ये हुए और दूसरी यह की फरजो की तीसरी और चौथी रकात मे अल हमद शरीफ की जगह फकत सबहान अल्लाह तीन बार कह कर रुकुअ कर ले मगर वित्र की तीनों रकातो मे अल हमद शरीफ और सूरत दोनों जरूर पढ़ी जाए ।
तीसरी तखफीफ यह की कायदा अखीरा मे अत्ताहीयात के बाद दोनों दुरूदों और दुआओ की जगह सिर्फ अल्लाह हुम्मा सल्ली अला मुहम्मदीउ व आलिही कह कर ही सलाम फेर ले ।
चौथी तखफीफ ये है के वित्र की तीसरी रकात मे दुआए कुनूत की जगह अल्लाहु अकबर कह कर फकत एक बार या तीन बार रब्बिग फिरली कहे ।
कजा ए उमरी नमाज का तरीका – आसान लफ्जों मे
अब सवाल ये उठता है के कजा ए उमरी नमाज का तरीका क्या है ? इसका जवाब हम आपको नीचे स्टेप बाई स्टेप उसके तरीके के साथ दे रहे है ।
(01) कजा ए उमरी नमाज की नियत
हर कजा नमाज अदा करने से पहले नियत करना जरूरी है आप दिल मे नियत करे नमाज हो जाएगी हा जबान से कह लेना अफजल है जो के एसे कहे..
” मै आज अपनी सबसे पहली छूटी हुई फ़जर या कोई और वक्त की फर्ज नमाज अदा कर रहा हूँ या कर रही हूँ जो मुझ पर फर्ज थी । ”
और अगर आपको वक्त या तारीखे याद नहीं तो बस इतना भी काफी है के,
” मै कजा ए उमरी की फ़जर की एक फर्ज नमाज अदा कर रहा हूँ या कर रही हूँ । ”
(02) कजा ए उमरी नमाज मे तरतीब का ख्याल
सबसे पहले आपको पता होना चाहिए के जब कजा अदा की जाती है तो फकत फर्ज नमाजे और वित्र ही अदा की जाती है इसके अलावा न सुन्नतए मोकदा और न गैर मोकदा और न ही नवाफ़िल अब इसके बाद आप नमाजों को उनके वक्त के हिसाब से अदा करे ये ज्यादा बहतर रहेगा लेकिन एसा नहीं है के फ़जर के वक्त बस फ़जर की ही कज़ा होगी पढ़ तो किसी भी नमाज के वक्त किसी भी नमाज की कज़ा पढ़ सकते है लेकिन बहतर और आसान ये ही है के जो नमाज अदा करे उसी के साथ या उससे पहले उसकी कज़ा अदा करते चले ।
फ़जर — जौहर — असर — मगरिब — इशा + वित्र
आसानी इसी मे होगी के आप हर दिन पाँच वक्त की फर्ज नमाजों के साथ ही एक-एक या दो-दो कजा नमाज भी पढ़ते चले लेकिन याद रखे के फ़जर की नमाज से और असर की नमाज जमात से पहले ही इनकी कजा पढे ।
(03) सिर्फ फर्ज और वित्र ही कजा ए उमरी नमाज मे
जैसा के ऊपर बता दिया गया है के कजा ए उमरी नमाज मे फकत फर्ज और वित्र की ही नमाज कजा पढ़ी जाती है सुन्नत और नवाफ़िल नमाजों की कजा नमाज नहीं पढ़ी जाती है ।
(04) रोजाना एक निजाम के कजा ए उमरी पढे
अगर आप रोज पाँच वक्त की नमाज के साथ 2 या 3 कजा नमाज पढ़ते चलते है तो धीरे-धीरे आप अपनी पुरानी छुटी हुई नमाजों का कफ़ारा अदा कर लेंगे ये आपके ऊपर खुदा ए काएनात का कर्ज है जो आपको लौटाना ही है ।
मिसाल के तौर पर
- फ़जर की नमाज से पहले ही एक फ़जर की कज़ा पढ़ले
- जौहर के बाद या पहले पुरानी जौहर की कज़ा पढ़ले
- असर से पहले ही एक असर की कज़ा पढ़ले
- मगरिब के बाद एक मगरिब की कजा पढ़ले
- इशा के बाद एक इशा की कजा और 3 वित्र की कजा पढ़ले
इससे आपके लिए आसान हो जाएगा अपनी उम्र भर की नमाजों कजा करना लेकिन अगर चाहे के एक साथ ही पढलु तो आप एक या दो ही एसा कर पाओगे और फिर छोड़ दोगे लेकिन इससे आप मजबूती के साथ अपनी अदा के साथ ही अपनी कजा नमाजों को भी पूरा करते चलोगे ।
(05) तौबा और अस्तगफार
कजा ए उमरी के अमल के साथ-साथ, अल्लाह पाक से तौबा और माफी मागना भी जरूरी है तौबा दिल से हो और उसके साथ – साथ अमल भी हो । और ये अहम भी करे के आइंदा नमाज कजा जान बूझ कर कभी नहीं करेंगे और जब जिंदगी है तब तक ही अल्लाह पाक के अता किए तमाम ही फराइज़ और लोगों के हुकूक ईमानदारी से अदा करते रहेंगे ।
कजा ए उमरी नमाज पढ़ने के फायेदे क्या-क्या है ?
कजा ए उमरी नमाज का तरीका सिर्फ एक अमल नहीं, बल्कि अल्लाह पाक की तरफ रुजू का जरिया है। इसके कुछ फवाइद ये है :
- गुनाहों की माफी
- अल्लाह पाक की रहमत और बरकत
- जिंदगी मे सुकून और सकून
- नमाज की कदर का एहसान
- दिन का अच्छा रूटीन
बहुत ही अहम सवालात और उनके जवाबात कजा ए उमरी के हवाले से
(01) क्या कजा ए उमरी नमाज सब के लिए जरूरी है ?
अगर किसी शख्स ने कभी नमाज नहीं पढ़ी या कई साल छोड़ी तो उसे अपनी छूटी हुई नमाजों की कजा अदा करना लाजिमी है ।
(02) अगर मुझे याद नहीं के कितनी नमाज छूटी तो ?
तो अंदाजे से एक फेसला कीजिए के तकरीबन कितनी सालों से आपने छोड़ी है और अगर बिल्कुल पढ़ी ही नहीं है तो ये अंदाज कीजिए के आप कब बालिग हुए तो उसी साल से आप अपनी कजा ए उमरी पढ़िएगा क्योंकि बालिग होने से ही नमाज फर्ज हो जाती है।
(03) क्या कजा ए उमरी सिर्फ एक ही वक्त की नमाजों के लिए होती है ?
नहीं, एक ही वक्त के लिए नहीं बल्कि आपको फ़जर से लेकर वित्र तक सब वक्त की नमाजों की कजा करनी ही होगी और वो भी फर्ज-फर्ज और वित्र ।
(04) क्या औरत को भी कजा ए उमरी अदा करनी होगी ?
हा, लेकिन हेज और निफ़ास के दिनों की नमाजों की कजा नहीं होती है बाकी इनके इलाव जितनी भी छूटी हुई फर्ज नमाजों की कजा उन पर भी लाजिम है अदा करनी ही होगी चाहे मर्द हो या चाहे औरत ।
कजा ए उमरी नमाज का तरीका और नेकी का सफर
जब बंदा कजा ए उमरी नमाज का तरीका अपनाता है तो वो न सिर्फ अपनी ड्यूटी अदा करता है बल्कि अल्लाह पाक से तालुक भी मजबूत करता है हर रात, हर वक्त, एक-एक कजा नमाज इंसान को नफरत से, शैतानी वसवसों से और बी रहरवी से दूर करता है और ये एक नैक रास्ते पर चल पड़ता है अब इसके दिल मे दुनिया मुहब्बत कम होती जाती है और खुदा का खौफ दिल मे आता जाता है और हुज़ूर नबी ए रहमत की जिंदगी इसके लिए आइडियल बनने लगती है ।
नमाज ए कसर की कजा कैसे पढे ?
अगर हालते सफर की कजा नमाज हालते इकांत मे पढ़ेंगे तो कसर ही पढ़ेंगे और हालते इकामत की कजा नमाज सफर मे कजा करेंगे तो पूरी पढ़ेंगे यानि कसर नहीं पढ़ेंगे ।
कजा नमाजे छुप कर पढिए
कजा नमाजे चुप कर पढिए लोगों पर या घर वालों बल्कि करीबी दोस्तों पर भी इसका इजहार न कीजिए मसलन ये मत कहिए के मेरी आज फ़जर की कजा हो गई या मै कजा ए उमरी कर रहा हूँ या कर रही हूँ क्योंकि गुनाह का इजहार भी मकरूह ए तहरीमी और गुनाह है लिहाजा अगर लोगों की मौजूदगी मे वित्र कजा करे तो तकबीर ए कुनूत के लिए हाथ न उठाए ।
मै आइंदा नमाजे कजा नहीं करूंगा – तौबा की मेने ?
सदरुल अफाजिल हजरते मौलाना सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरदाबादी फरमाते है के, ” तौबा के तीन रुकन है,
- एतिराफे जुर्म
- नदामत
- अजमे तर्क यानि के इस गुनाह को छोड़ने का पुख्ता अहद करना
अगर गुनाह काबिल ए तलाफ़ी है तो उस की तलाफ़ी भी लाजिम है मसलन तारिक ए सलात यानि नमाज तर्क कर देने वाले तौबा के लिए नमाजों की कजा भी लाजिम है ।
जल्द से जल्द अपनी-अपनी कजा पूरी कर लीजिए-
जिस के जिम्मे कजा नमाजे हो उनका जल्द से जल्द पढ़ना वाजिब है मगर बाल बच्चों की परवरिश और अपनी जरूरीयात की फ़राहमी के सबब ताखीर जाइज है लिहाजा फुरसत का जो वक्त मिले उस मे कजा पढ़ते रहे यहा तक की पूरी हो जाए ।
खुलासा ए कलाम
नमाज हर एक आकील बालिग मुसलमान पर फर्ज है और इसका छोड़ देना बहुत बड़ा गुनाह ए कबीरा है लेकिन मजबूरी मे छूटी तो गुनाह नहीं लेकिन दोनों ही सूरत मे इसकी कजा अदा करनी ही होगी ।
अगर किसी की कई सालों की छूटी है तो वो हिसाब लगाए और अगर किसी ने शुरू से ही नहीं पढ़ी तो वो वहा से पढे जब से वो बालिग हुआ लड़का है तो 12 साल से और लड़की है तो 9 साल तकरीबन इस उम्र मे बालिग हो जाते है इस हिसाब से देखले के आपकी अब उम्र कितनी है ।
उतनी ही साल की कजा ए उमरी नमाज पढिए जैसा के ऊपर बताया गया है और अगर अब भी किसी को कोई डाउट है तो कमेन्ट मे पूछिए इंशा अल्लाह जवाब दिया जाएगा ।