मेरे अजीजों दौर ए हाजिर मे अपना ईमान बचाना बहुत ज्यादा शदीद मुश्किल हो चला है ये वो कहते है जो अमल मे बहुत पीछे होता है यकीनन जिनके दिल मे अल्लाह का खौफ है और हुज़ूर नबी ए रहमत से दुनिया की हर एक चीज से ज्यादा मुहब्बत है वो आज भी अपने ईमान पर मजबूती के साथ कायम है और कायम ही रहेंगे ।
आज के इस पोस्ट मे हम कुछ एसे वाकियों को बयान करेंगे जिनको जान कर आपका ईमान ताजा हो जाएगा जिसका नाम है एक महबूबा से इश्क और एक अल्लाह से मुहब्बत तारीख ए इस्लाम मे कुछ एसे वाकिया गुजरे है कुछ एसे ईमान वाले लोग भी गुजरे है के जिनको पढ़ कर ईमान तरो ताजा हो जाता है ।
आइए इनका जिक्र करते है इन शब्दों के साथ के,
” मेरी जिंदगी का मकसद तेरे दीन की सरफराजी,
मै इसलिए मुसल्मा मै इसीलिए नमाजी । “
एक अल्लाह वाले और एक जोड़े की मुहब्बत का वाकिया
इराक की राजधानी बगदाद शरीफ मे सुबह-सुबह का वक्त था एक अल्लाह वाले अपने रास्ते को चल रहे थे सुबह का वक्त था लोग बार अपने दुकानात को भी खौल रहे थे इतने मे किसी ईमान वाले दुकानदार ने उन अल्लाह वाले यानि बुजुर्ग को,
बुलाकर दूध पिलाया और आप ने अच्छे से तरीके से नोश फरमा भी लिया फ़ारिक होकर अल्लाह पाक का शुक्रिया अदा किया और फिर कहा उस दुकानदार से के तेरा भी शुक्रिया इतना कहने के बाद वो बुजुर्ग आगे चल दिए।
चूंकि बारिश पड़ कर रुकी थी इसलिए जब वो चलते थे तो पेरी मे मोजूद चप्पलों से कीचड़ उझलता था और दाई बाई तरफ गिरता था अब जेसे ही वो थोड़ा आगे बड़े तो,
एक आलीशान होटल नुमा घर की सीडियों पर एक मर्द अपनी महबूबा को लेकर बैठा था अब जैसे ही ये बुजुर्ग उस जोड़े के पास से गुजरे तो कीचड़ उझलकर उसकी महबूबा के चमकते कपड़ों पर जाकर गिरी ।
ये देख कर उस मर्द को बहुत गुस्सा आया और वो भाग कर आया और इन बुजुर्ग को पकड़ लिया और पकड़ते ही बहुत जोर से चाटा मारा और कहने लगा देख कर नहीं चल सकते मेरी महबूबा का कितना आलीशान लिबास खराब कर दिया ।
चाटा खाकर और उसके ताने सुनकर बुजुर्ग ने आसमान की तरफ देख कर कहा, ” मालिक तू भी बड़ा ही बे नियाज़ है कभी किसी से दूध पिल वाता है तो किसी से मार पड़वाता है । ”
इतना कहने के बाद वो बुजुर्ग वहा से चल दिए अब बाजार से निकल कर वो आगे ही बड़े थे के इधर इस मर्द की महबूबा सीडियों से ऊपर चड़ रही थी के पैर फिसल गया और सर पर इस कद्र चोट लगी के मौके पर ही फौत हो गई ।
अब बाजार मे हल्ला हो गया के एक बुजुर्ग मे इसको बद्दूआ दी थी अभी उसके बाद ही ये सब कुछ हो गया । वो बुजुर्ग अभी बगदाद के आखिरी हिस्से तक पहुच चुके थे के लोगों ने उनको पकड़ लिया और पकड़ कर उस मर्द के पास ले आये ।
और लोगों ने उन बुजुर्ग से कहा के वेसे तो बड़े अल्लाह वाले बने फिरते हो थोड़ा बर्दाश्त भी नहीं कर सके इस तरह कई सारे लोगों ने उनको इस तरह कहा के मानो के लोगों को यही लगा के इन्होंने ही बददुआ दी थी ।
इसी वजह से इस खवातीन का इंतेकाल हो गया जब लोगों ने बहुत ज्यादा बाते कही तब आपने कहा देखो अगर तुमको सच जानना है तो सुनो,
” मैने इसको कोई बद्दूआ नहीं दी हुआ बस इतना है के जब मै यहा से गुजरा तो मेरे जरिये से कुछ कीचड़ उछल कर इसकी महबूबा के लिबास पर गिराह फिर ये देख कर इसके यार को गुस्सा आ गई और जब इसके यार ने मेरे जोर से थप्पड़ मार तो ये देख कर मेरे यार को गुस्सा आगई बस हुआ यही के ये असल मे यार-यार की लड़ाई है । “
अल्लाह-अल्लाह मेरे अजीजों कितना ही खूबसूरत वाकिया है कितना ईमान मजबूत करने वाला वाकिया है और वाकई मे जब आपका अल्लाह पाक से रिश्ता मजबूत होता है न तो फिर एसे ही होता है ।
एक मर्द का एक गैर महरम खवातीन को देखना
ये दौर था खलीफा ए सानी हज़रत ए उमर बिन खत्ताब रदी अल्लाहु ताला अनहू का इनके दौर मे एक वक्त पर कुछ खवातीन एक जगह से दूसरी जगह जाती थी और उन्मे से एक खातून थी जिसको रोजाना देखने के लिए एक मर्द आता था ।
एसा रोजाना का उसका मामूल था के डैलि ही उस खातून का दीदार करना ही है कुछ दिनों बाद उस खातून को भी एहसास हो गया के ये मर्द मुझे देखने के लिए रोजाना यहा आता है ।
मेरे अजीजों अब होता ये है के एक रोज जब वो तमाम खवातीन एक साथ निकलती है बाहर तो ये खातून बकियों से कहती है के आप चलिए मै आती हूँ इतना कहने के बाद बाकी की खवातीन चली जाती है ।
और ये खातून उस मर्द के पास जाती है और कहती है के क्या मकसद है आपका यहा रोजाना आने का ! तो वो मर्द कहता है मकसद बस यही है के मुझे आपसे मुहब्बत है इश्क है लिहाजा आप मेरी हो जाइए ।
इतना सुनने के बाद वो खातून कहती है के ठीक है मै राजी हूँ लेकिन मेरी एक शर्त है उसको पूरा करने के बाद ही मै आपके साथ चलने के लिए तैयार रहूँगी अब वो मर्द बड़ा ही खुश हो जाता है ।
खुशी से पूछता है के जल्दी बताइए वो कौनसी शर्त है आपकी ?
वो खातून कहती है के आप बस 40 दिन का पांचों वक्त की नमाज हज़रत ए उमर के पीछे जमात के साथ पढ़ लीजिए 41 वे दिन मै आपको यही आपके लिए तैयार होकर आऊँगी आपके साथ चलने के लिए ।
इतना सुनने के बाद वो मर्द बड़ा खुश हो जाता है और सोचता है के बस इतना ही ये तो बड़ा ही आसान है ठीक है फिर मै आपको 40 दिन बाद ही यही मिलूँगी ।
अब वो मर्द हजरते उमर के पीछे नमाज पढ़ना शुरू करता है धीरे-धीरे कुरान की आवाज उसके कानों पर जाने लगती है और कानों से उसके दिल और दिमाग मे कुरान की तिलावत रोशनी करने लगती है ।
कभी कुरान मे अल्लाह के गजब के बारे मे सुनता है तो कभी उसकी रहमत सुनता है तो कभी हुज़ूर नबी ए करीम की तारीफ सुनता है अब धीरे-धीरे उसके दिल का प्रोग्राम बदलने लगता है ।
फिर वो सहाबा ए इकराम के पास भी बैठने लगता है वो सुनता है के हममे से कोई मुसलमान हो ही नहीं सकता जब तक के वो दुनिया मे सबसे ज्यादा मुहब्बत हुज़ूर ए नबी ए करीम से न करे ।
कभी कुछ भलाई की बात सुनता है कभी कही से गुनाहों से दूर रहने बचने के बात सुनता है और सुनता है के अल्लाह पाक ने हज़रत ए उमर को एसा नवाजा है के उनको देख कर शैतान भी रास्ता बदल लेता है ।
अब उसके दिल मे दिमाग मे बहुत कुछ बदलने लगता है और धीरे-धीरे वक्त भी गुजर जाता है अब 41वा दिन आता है वो मर्द उसी जगह पर जाता है और वो खातून भी उसी जगह उसका ही इंतेजार कर रही होती है ।
अब जैसे ही वो खातून उस मर्द के नूरानी चेहरे को देखती है तो वो समझ जाती है ये कामियाब हो गया तो अब धीरे-धीरे अपने कदम उस मर्द की तरफ बड़ाने लगती है तो उसके कदम को देख कर वो मर्द कहता है ओ खातून वही रुक जाओ ।
वो खातून कहती है क्यों क्या अब मुझसे इश्क नहीं करते क्या ? इसके जवाब मे वो मर्द कहता है के नहीं मै इश्क तो करता हूँ लेकिन तुझसे नहीं बल्कि उस हस्ती से करता हूँ जिसके इश्क के बिना ईमान अधूरा है ।
लिहाजा तू जिन कदमों से मेरी तरफ बड़ रही है उन्ही कदमों से वापिस लौट जा क्योंकि अब मेरे दिल मे इश्क ए मुस्तफा आ गया है ।
हमने क्या जाना ?
अल्लाह-अल्लाह मेरे अजीजों ये कैसा ईमान था ये कैसी मुहब्बत थी और ये किस तरह से बाते करते थे के इनकी बाते सीधे दिल और दिमाग मे बैठती थी वो आपको जवाब मिलेगा के ये बात तो वही करते है थे जो आज हम किताबों मे पढ़ते है लेकिन फर्क,
यहा हो जाता था के इनकी बाते और इनके आमाल एक-दूसरे से मेल खाते थे ये जैसा बोलते थे वैसा ही सोचते था उनकी बातों मे कोई दुगला पन नहीं होता था सच्चे लोग सच्ची बाते ही किया करता थे ।
मेरे अजीजों लिहाजा हम खुद अपने आप को भी तो देखे न किस कदर सोशल मीडिया पर फिल्मे ड्रामों मे अपनी मे अपने वक्त को कैसे जाया करते रहते है क्या हमे इस वक्त का हिसाब नहीं देना ?
गौर करने वाली बात है जब तक जिंदा है तब तक ही लोगों की बाते है और जब मर जाएंगे तब बस अपने-अपने आमाल ही कब्र मे जाएंगे और आमाल ही सबसे बड़ी अहमियत याफ़्ता चीज है ।